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प्रतिज्ञा

तुम नहीं सह सकते। भले आदमी, तुम्हारे लिए तो मैंने अपने ऊपर इतना बड़ा ज़ब्र किया और अब तुम कन्नियाँ काट रहे हो। अब अगर तुमने कोई मीन-मेख निकाली तो मैं तुम्हें मार ही डालूँगा, समझ लेना, चुपके से मेरी टमटम पर बैठो और लाला बदरीप्रसाद के पास जाकर मामला खरा कर आओ।

दाननाथ ने बिजली का बटन दबाते हुए कहा--तुम इस काम को जितना आसान समझते हो; उतना आसान नहीं है। कम-से-कम मेरे लिए।

अमृतराय ने मित्र के मुख को स्नेह में डूबी हुई आँखों से देखकर कहा--यह जानता हूँ। बेशक आसान नहीं है। मैं ही पहले बाधक था। मैं ही अब भी बाधक हूँ; लेकिन तुम जानते हो मैंने एक बार जो बात ठान ली, वह ठान ली। अब ब्रह्मा भी उतर आयें तो मुझे विचलित नहीं कर सकते। पण्डित अमरनाथ की उक्ति मेरे मन में बैठ गई। मुझे ऐसा जान पड़ता है, कि प्रेमा ही नहीं, किसी भी क्वारी कन्या से विवाह करने का अधिकार मुझे नहीं है। ईश्वर ने वह अधिकार मेरे हाथ से छीन लिया। प्रेमा जैसी दुर्लभ वस्तु को पाकर छोड़ देने का मुझे कितना दुख हो रहा है, यह मैं ही जानता हूँ। और कुछ-कुछ तुम भी जानते हो; लेकिन इस शोक में चाहे मेरे प्राण ही निकल जायँ, जिसकी कोई सम्भावना नहीं है, तो भी मैं अपने विधुर जीवन में प्रेमा को प्रवेश न करने दूँगा। अब तो तुम मेरी ओर से निश्चिन्त हो गये?

दाननाथ अब भी निश्चिन्त नहीं हुए थे। उनके मन में एक नहीं सैकड़ों बाधाएँ आ रही थीं। इस भय से कि यह नई शङ्का सुनकर

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