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प्रतिज्ञा

कमलाप्रसाद ने गरजकर कहा--ज़ोर से बोलो, बरफ़ लाये कि नहीं? मुँह में आवाज़ नहीं है?

कहार की आवाज़ अबकी बिलकुल बन्द हो गई। कमलाप्रसाद ने कहार के दोनों कान पकड़ कर हिलाते हुए कहा--हम पूछते हैं, बरफ़ लाये कि नहीं। नहीं?

कहार ने देखा कि अब बिना मुँह खोले कानों के उखड़ जाने का भय है, तो धीरे से बोला--नहीं सरकार!

कमला--क्यों नहीं लाये?

कहार--पैसे न थे।

कमला--क्यों पैसे न थे? घर में जाकर माँगे थे?

कहार--हाँ हजूर किसी ने सुना नहीं।

कमला--झूठ बोलता है। मैं जाकर पूछता हूँ, अगर मालूम हुआ कि तूने पैसे नहीं माँगे तो कच्चा ही चबा जाऊँगा रैसकल!

कमलाप्रसाद ने कपड़े भी नहीं उतारे। क्रोध में भरे हुए घर में आकर माँ से पूछा--क्यों अम्मा, बदलू तुमसे बरफ़ के लिए पैसे लेने आया था?

देवकी ने बिना उनकी ओर देखे ही कहा--आया होगा, याद नहीं आता। बाबू अमृतराय से तो भेंट नहीं हुई?

कमला--नहीं, उनसे तो भेंट नहीं हुई। उनकी तरफ़ गया तो था; लेकिन जब सुना कि वह किसी सभा में गये हैं, तो मैं सिनेमा चला गया। सभामों का तो उन्हें रोग है और मैं बिलकुल फुजूल समझता हूँ। कोई फ़ायदा नहीं। बिना व्याख्यान सुने भी आदमी

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