थिरकता हुआ चला जाता था। उसी बजरे की भाँति अमृतराय का हृदय भी आन्दोलित हो रहा था, पर दाननाथ निस्पन्द बैठे हुए थे, मानो वज्राहत हो गये हों। सहसा उन्होंने कहा—भैया, तुमने मुझे धोखा दिया!!
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