दाननाथ कुछ देर तक लहरों से खेलने के बाद बोले--आख़िर तुमने क्या निश्चय किया है?
अमृतराय ने पूछा--किस विषय में?
दान॰--यही अपनी शादी के विषय में।
अमृत॰--मेरी शादी की चिन्ता में तुम क्यों पड़े हुए हो?
दान॰--अजी तुमने प्रतिज्ञा की थी, याद है। आख़िर उसे तो पूरी करोगे?
अमृत॰--मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर चुका।
दान॰--झूठे हो!
अमृत॰--नहीं सच!
दान॰--बिलकुल झूठ! तुमने अपना विवाह कब किया?
अमृत॰--कर चुका, सच कहता हूँ।
दाननाथ ने कुतूहल से उनकी ओर देखकर कहा--क्या किसी को चुपके से घर में डाल लिया?
अमृत॰--जी नहीं, खूब ढोल बजाकर किया और स्त्री भी ऐसी पाई, जिस पर सारा देश मोहित है।
दान॰--अच्छा, तो क्या कोई अप्सरा है?
अमृत॰--जी हाँ, अप्सराओं से भी सुन्दर!
दान॰--अब मेरे हाथ से पिटोगे। साफ़-साफ़ बताओ कब तक विवाह करने का इरादा है।
अमृत॰---तुम मानते ही नहीं तो मैं क्या करूँ? मेरा विवाह हो गया है।
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