पृष्ठ:प्रतिज्ञा.pdf/२३५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
प्रतिज्ञा

दाननाथ कुछ देर तक लहरों से खेलने के बाद बोले--आख़िर तुमने क्या निश्चय किया है?

अमृतराय ने पूछा--किस विषय में?

दान॰--यही अपनी शादी के विषय में।

अमृत॰--मेरी शादी की चिन्ता में तुम क्यों पड़े हुए हो?

दान॰--अजी तुमने प्रतिज्ञा की थी, याद है। आख़िर उसे तो पूरी करोगे?

अमृत॰--मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर चुका।

दान॰--झूठे हो!

अमृत॰--नहीं सच!

दान॰--बिलकुल झूठ! तुमने अपना विवाह कब किया?

अमृत॰--कर चुका, सच कहता हूँ।

दाननाथ ने कुतूहल से उनकी ओर देखकर कहा--क्या किसी को चुपके से घर में डाल लिया?

अमृत॰--जी नहीं, खूब ढोल बजाकर किया और स्त्री भी ऐसी पाई, जिस पर सारा देश मोहित है।

दान॰--अच्छा, तो क्या कोई अप्सरा है?

अमृत॰--जी हाँ, अप्सराओं से भी सुन्दर!

दान॰--अब मेरे हाथ से पिटोगे। साफ़-साफ़ बताओ कब तक विवाह करने का इरादा है।

अमृत॰---तुम मानते ही नहीं तो मैं क्या करूँ? मेरा विवाह हो गया है।

२३०