मैं केवल एक बार घर चला जाया करूँगा। यहाँ के आदमियों को ताकीद कर दी जायगी----किसी को कानोकान ख़बर न होगी। उस आनन्द की कल्पना से मेरा हृदय नाच उठता है। वही जीवन मेरे सांसारिक आनन्द का स्वर्ग होगा। कोई बात ईश्वर की इच्छा के बिना नहीं होती पूर्णा! एक पत्ती भी उसकी आज्ञा के बिना नहीं हिल सकती। सुमित्रा मुझसे रुष्ट है, तो यह ईश्वर की इच्छा है। तुम्हारी मुझपर कृपा है, तो यह भी ईश्वर की इच्छा है। क्या हमारा और तुम्हारा सयोग ईश्वर की इच्छा के बिना हो सकता है? कभी नहीं, कभी नहीं। यह लीला वह क्यों खेल रहा है, यह हम और तुम नहीं समझ सकते पूर्णा! बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी नहीं समझ सकते; पर हो रहा है सब उसकी इच्छा से। धर्म और अधर्म यह सब ढकोसला है! अगर अभी तक तुम्हारे मन में कोई धार्मिक शंका हो, तो उसे अब निकाल डालो। आज से तुम मेरी प्राणेश्वरी हो और मैं तुम्हारी दास।
यह कहते-कहते कमला ने पूर्णा का हाथ पकड़कर अपनी गर्दन में डाल लिया और दोनों प्रेमालिङ्गन में मग्न हो गए! पूर्णा ज़रा भी न झिझकी, अपने को छुड़ाने की ज़रा भी चेष्टा न की; किन्तु उसके मुख पर प्रफुल्लता का कोई चिह्न न था---न अधरों पर मुस्कान की रेखा थी, न कपोलों पर गुलाब की झलक, न नयनों में अनुराग की लालिमा। उसका मुख-कमल मुरझाया हुआ था, नीचे झुकी हुई आँखें आँसुओं से भरी हुईं, सारी देह शिथिल-सी जान पड़ती थी।
कमला ने पूछा---उदास क्यों हो प्रिये? यह तो आनन्द का समय है।
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