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प्रतिज्ञा

सहने के लिए वह तैयार थे; लेकिन प्रेमा का क्या हाल होगा, उन्हें ध्यान न आया था। प्रेमा कितनी विचारशील है, यह उन्हें मालूम था। उनके सत्साहस का समाचार सुनकर वह उनका तिरस्कार न करेगी। वह उनका अब और भी सम्मान करेगी। बोले--अगर वह उतनी ही सहृदय है, जितना मैं समझता हूँ, तो मेरी प्रतिज्ञा पर उसे दुःख न होना चाहिये। मुझे विश्वास है कि उसे सुनकर हर्ष होगा कम से कम मुझे ऐसी ही आशा है।

दाननाथ ने मुँह बनाकर कहा--तुम क्या समझते होगे कि बड़ी मैदान मार पाये हो और जो सुनेगा फूलों हार लेकर तुम्हारे गले में डालने दौड़ेगा; लेकिन मैं तो यही समझता हूँ कि तुम पुराने आदर्शों को भ्रष्ट कर रहे हो। तुम नाम पर मरते हो, समाचारपत्र में अपनी प्रशंसा देखना चाहते हो, बस और कोई बात नहीं। ना कमाने का यह सस्ता नुस्खा है, न हर लगे न फिटकरी, और न चोखा। रमणियाँ नाम की इतनी भूखी नहीं होती। प्रेमा कितनी विचारशील हो; लेकिन यह कभी पसन्द न करेगी कि उसका हृदय किस ब्रत के हाथों चूर-चूर किया जाय। उसका जीवन दुःखमय हो जायगा।

अमृतराय का मकान आ गया। टमटम रुक गया। अमृतराय उतरकर अपने क़मरे की तरफ़ चले। दाननाथ ज़रा देर तक इस इन्तज़ार में खड़े रहे कि यह मुझे बुलावें तो जाऊँ, पर जब अमृतराय उनकी तरफ़ फिरकर भी न देखा, तो उन्हें भय हुआ, मेरी बातो से कदाचित् इन्हें दुःख हुआ है। कमरे के द्वार पर जाकर बोले--भई, मुझ से नाराज़ हो गये क्या?