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प्रतिज्ञा

भाभीजी आज-कल क्यों रूठी हुई हैं? मेरे पास कई दिन हुए, एक ख़त भेजा था कि मैं बहुत जल्द मैके चली जाऊँगी।

कमला---अभागों के लिए नरक में भी जगह नहीं मिलती। एक दर्जन चिट्ठियाँ तो लिख चुकी हैं; मगर मैकेवालों में तो कोई बात भी नहीं पूछता। कुछ समझ ही में नहीं आता है, चाहती क्या हैं, रात दिन जला करती है, शायद ईश्वर ने उन्हें जलने के लिए बनाया है। मैं दिन खुद ही मैके पहुँचाये देता हूँ। उन्हें मज़ा तब आवे, जब रुपयों की थैली दे दूँ और कुछ पूछूँ न। उनका जिस तरह जी चाहे ख़र्च करें। सो, यहाँ अपने बाप का भी विश्वास नहीं करते, वह क्या चीज़ हैं?

कमला चला गया। दाननाथ भी उनके साथ बाहर आये और दोनों बातें करते हुए बड़ी दूर तक चले गये।

सहसा कमला ने रुककर कहा---साढ़े नौ तो बज रहे हैं। चलो सिनेमा देख आयें।

दान॰---इतनी वक्त! कम-से-कम एक बजे तक होगा। नहीं साहब आप जायँ मैं जाता हूँ।

कमला ने दाननाथ का हाथ पकड़कर अपनि ओर घसीटते हुए कहा---अजी चलो भी। वहीं होटल में बैठकर खा लेंगे, तुम्हें मैनेजर से मिलायेंगे। बड़ा सोहबती आदमी है । उसी के घर भोजन भी करेंगे।

दान॰---नहीं भाई साहब, माफ कीजिये। बेचारी औरतें मेरी राह देखती बैठी रहेंगी।

कमला॰---अच्छा, अगर एक दिन बारह बजे तक बैठी रहेंगी,

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