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ऐसे ही आप स्वदेश-चिन्ता के लिए कुछ काल देशान्तर में रह आएं तो आपकी बड़ाई है। पर हां यदि वहां जाके यहाँ की
ममता ही छोड़ दीजिए तो आपका जीवन उन दांतों के समान
है जो होठ या गाल कट जाने से अथवा किसी कारण-विशेष से
मुंह के बाहर रह जाते हैं, और सारी शोभा खोके भेड़िए कैसे
दांत दिखाई देते हैं। क्यों नहीं, गाल और होंठ दांतों का परदा
है, जिसके परदा न रहा, अर्थात् स्वजातित्व की रौरतदारी न
रही, उसकी निरलज्ज जिंदगी व्यर्थ है। कभी आपको दाढ़ की
पीड़ा हुई होगी तो अवश्य यह जी चाहा होगा कि इसे उखड़वा
डालें तो अच्छा है। ऐसे ही हम उन स्वार्थ के अंधों के हक में
मानते हैं जो रहें हमारे साथ, बनें हमारे ही देश-भाई, पर सदा
हमारे देश-जाति के अहित ही में तत्पर रहते हैं ! परमेश्वर उन्हें
या तो सुमति दे या सत्यानाश करे। उनके होने का हमें कौन
सुख ? हम तो उनकी जैजैकार मनावेंगे जो अपने देशवासियों
से दांतकाटी रोटी का बर्ताव (सच्ची गहरी प्रीति) रखते हैं ।
परमात्मा करे कि हर हिन्दू-मुसलमान का देशाहित के लिए
चाव के साथ दांतों पसीना आता रहे। हमसे बहुत कुछ नहीं
हो सकता तो यही सिद्धान्त कर रक्खा है कि-
'कायर कपूत कहाय, दांत दिखाय भारत तम हरौ',
कोई हमारे लेख देख दांतों तले उंगली दबाके सूझबूझ
की तारीफ करे, अथवा दांत बाय के रह जाय, या अरसिकता-
वश यह कह दे कि कहां की दांताकिलकिल लगाई है तो इन