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की जो करतूत है, वह इसी समय है। अतः हमें आवश्यक है कि इस काल की कद्र करने में कभी न चूकें। यदि हम निरे आलसी रहे तो हम युवा नहीं जुवां हैं, अर्थात् एक ऐसे तुच्छ जन्तु हैं कि जहां होंगे वहां केवल मृत्यु के हाथ से जीवन समाप्त करने भर को ! और यदि निरे ग्रह-धंधों में लगे रहे तो भी बैल की भांति जुवा (युवा-काल) ढोया। अपने लिए श्रम ही श्रम है, स्त्री पुत्रादि दस पांच हमारे किसान चाहे भले ही कुछ सुखानुभव करलें।

यदि, ईश्वर बचाए, हम इंद्रियाराम हो गये तो भी, यद्यपि कुछ काल के लिए, हम अपने को सुखी समझेंगे, कुछ लोग अपने मतलब को हमारी प्रशंसा और प्रीति भी करेंगे, पर थोड़े ही दिन में उस सुख का लेश भी न रहेगा, उलटा पश्चात्ताप गले पड़ेगा, बरंच तृष्णा-पिशाची अपनी निराशा नामक सहोदरा के साथ हमारे जीवन को दुःखमय कर देगी। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य यह षड्वर्ग यद्यपि और अवस्थाओं में भी रहते ही हैं, पर इन दिनों पूर्ण बल को प्राप्त हो के आत्म-मन्दिर में परस्पर ही युद्ध मचाए रहते हैं, बरंच कभी २ कोई एक ऐसा प्रबल हो उठता है कि अन्य पांच को दबा देता है, और मनुष्य को तो पांच में से जो बढ़ता है वही पागल बना देता है। इसी से कोई २ बुद्धिमान कह गए हैं कि इनको बिल्कुल दबाए रहना चाहिए, पर हमारी समझ में यह असम्भव न हो तो महा कठिन, बरंच हानिजनक तो है ही।