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इश प्रसिद्ध है। कभी कोई हँसी कर बैठे तो क्षमा कीजिएगा।"
'ब्राह्मण' बंद करते समय अपने जजमानों से विदा माँगते समय भी 'अंतिम संभाषण' में उन्होंने 'ब्राह्मण' की साहित्य-सेवा पर अपने विचार प्रकट किये हैं। इस सिंहावलोकन के पहले ये प्रसिद्ध शेर है:--
खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं॥"
आगे वे कहते हैं:---
“यह पत्र अच्छा था या बुरा, अपने कर्तव्य-पालन में योग्य था अथवा अयोग्य, यह कहने का हमें कोई अधिकार नहीं है; पर, हाँ इसमें संदेह नहीं कि हिंदी-पत्रों की गणना में एक संख्या इसके द्वारा भी पूरित थी, और साहित्य को थोड़ा-बहुत सहारा इससे भी मिलता रहता थाॱॱॱॱॱॱ ।"
एवं, पंडित प्रतापनारायण ने केवल साहित्य-चर्चा को उत्तेजित करने के उद्देश्य से 'ब्राह्मण' निकालना शुरू किया था। किंतु उसके द्वारा उस समय की जनता में देश-भक्ति के भाव उत्पन्न करना तथा सामाजिक सुधार की ओर उनका ध्यान आकर्षित करना भी उनका अभीष्ट था। तभी तो 'ब्राह्मण' के पन्ने 'गो-रक्षा', 'स्वदेशी', 'कान्यकुब्ज-कुरीति-निवारण' आदि विषयों से भरे पड़े हैं।
यह होते हुए भी यही मानना पड़ता है कि 'ब्राह्मण' ने साहित्यिक सेवा सब से अधिक की है।