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उन्नतग्रीव हो गई है, इसका सिर फोड़ना चाहिए, वहीं दो
चार लोगों के द्वारा पंच के हृदय में फूट फैला दी। बस,
बात की बात में सब के करम फूट गए। चाहे जहां का इति-
हास देखिए, यही अवगत होगा कि वहां के अधिकांश लोगों
की चित्तवृत्ति का परिणाम ही उन्नति या अवनति का मूल
कारण होता है।
जब जहां के अनेक लोग जिस ढर्रे पर झुके होते हैं तब
थोड़े से लोगों का उसके विरुद्ध पदार्पण करना--चाहे अति
श्लाघनीय उद्देश्य से भी हो पर अपने जीवन को कंटकमय
करना है । जो लोग संसार का सामना करके दूसरों के उद्धारार्थ
अपना सर्वस्व नाश करने पर कटिबद्ध हो जाते हैं वे मरने के
पीछे यश अवश्य पाते हैं, पर कब ? जब उस काल के पंच उन्हें अपनाते हैं तभी। पर ऐसे लोग जीते जी आराम से छिनभर
नहीं बैठने पाते, क्योंकि पंच की इच्छा के विरुद्ध चलना पर-
मेश्वर की इच्छा के विरुद्ध चलना है, और परमेश्वर की इच्छा
के विरुद्ध चलना पाप है, जिसका दंड-भोग किए बिना किसी
का बचाव नहीं। इसमें महात्मापन काम नहीं आता। पर ऐसे
पुरुषरत्न कभी कहीं सैकड़ों सहस्रों वर्ष पीछे लाखों करोड़ों
में से एक आध दिखाई देते हैं। सो भी किसी ऐसे काम
की नींव डालने को जिसका बहुत दिन आगे पीछे लाखों
लोगों को शान-गुमान भी नहीं होता। अतः ऐसों को संसार
में गिनना ही व्यर्थ है । वे अपने वैकुण्ठ, कैलाश, गोलोक, हेविन