पृष्ठ:प्रताप पीयूष.djvu/१३२

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वास्तविक कल्याण है।

एतदनुसार आज हमारी होली है। चित्त शुद्ध करके वर्ष- भर की कही सुनी क्षमा करके, हाथ जोड़ के, पांव पड़ के, मित्रों को मना के, बाहें पसार के उनसे मिलने और यथासामर्थ्य जी खोलके परस्पर की प्रसन्नता सम्पादन करने का दिन है । जो लोग प्रेम का तत्व तनिक भी नहीं समझते, केवल स्वार्थ- साधन ही को इतिकर्तव्य समझते हैं, पर हैं अपने ही देश जाति के, उनसे घृणा न करके ऊपरी आमोद-प्रमोद में मिला के समयान्तर में मित्रता का अधिकारी बनाने की चेष्टा करने का त्यौहार है। जो निष्प्रयोजन हमारी बात २ पर भुकरते ही हों उन्हें उनके भाग्य के आधीन छोड़के अपनी मौज में मस्त रहने का समय है। इसी से कहते हैं, नई बहू की नाईं घर में न घुसे रहो, पर्व के दिन मन मार के न बैठो, घर बाहर, हेती व्यौहारी से मानसिक आनन्द के साथ कहते फिरो-हो ओ ओ ली ई ई ई है।