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तो किसे होगी?
तीसरे उपदंश रोगवाले, क्योंकि बड़े २ वैद्यों ने सिद्ध किया है कि इस रोग में हड्डियों तक में छिद्र हो जाते हैं तो कपाल में भी हड्डी ही है, शरीर को भीतर ही भीतर फूंक देती है। अब समझने की बात है कि जिसके प्राण ब्रह्माण्ड (शिर) फोड़ के निकलें तथा पंचाग्नि की परदादी प्रति लोमाग्नि का सेवन करे वह परम योगी शरभंग ऋषि के समान तपस्वी क्यों न मोक्ष पावेगा ?
हमारे पाठक कहते होंगे, कहां की खुराफात बकते हैं। खैर, तो अब सांची २ सुना चलें।
स्वर्ग, नर्क, मुक्ति कहीं कुछ चीज़ नहीं है। बुद्धिमानों ने
बुराई से बचने के लिए एक हौवा बना दिया है, उसीका नाम
नर्क है, और स्वर्ग वा मुक्ति भलाई की तरफ झुकाने के लिए
एक तरह की चाट है। अथवा जो यह मान लो कि जिसमें
महादुःख की सामग्री हो वह नर्क और परम सुख स्वर्ग है तो
सुनिए, नर्की जीव हम गिना चुके, उन्हीं के भाई बंद और भी
हैं। रहे स्वर्ग के सच्चे पात्र, वह यह हैं-किसी हिन्दी-समा-
चारपत्र के सहायक, बशर्तेकि वार्षिक मूल्य में धुकुर पुकुर न
करते हों, और पढ़ भी लेते हों, उनको जीते ही जी स्वर्ग न
हो तो हम ज़िम्मेदार। दूसरे देशोपकारी कामों में एक पैसा
तथा एक मिनट भी लगावैंगे वे निस्सन्देह बैकुंठ पावेंगे, इसमें
पाव रत्ती का फरक न पड़ेगा हमसे तथा बड़े २ विद्वानों से