पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सन्तुष्टता, जगत्मान्य आदि लिखने में भी उन्हें कोई हिचक नही। इसी तरह बोलचाल के ढरें पर वाक्यों की गुम्फित लड़ी तैयार करने और दूसरे ढंग का नियमोल्लंघन करने में भी वे बेहिचक हैं । लन लेखों में आपको हिंदी के आरंभिक गद्य की ये सभी बातें मिलेंगी। प्रतिलिपि और छापे की मूलों को आवश्यकतानुसार शुद्धि-पत्र मे निर्दिष्ट कर दिया गया। हां, टूटी मात्राओं, गिर गए टाइपों में तथा हलंत और अनुग्वार के छूट गए चिह्नों का निर्देश नहीं किया गया है क्योंकि वे सहज ही समझ में आ जाने लायक हैं। जो लेख 'निबंध नवनीत' से संकलित हैं उन्हें छोड़ अन्य लेखो मे अनु- च्छेद-(पराग्राफ ) विभाजन या संयोजन का ढंग मूल लेखक का ही है। हां बिराम- चिह्नों को आवश्यक योजना प्रायः 'प्रथावली' - संपादक की है । लेखो को काल- क्रमानुसार रखा गया है। किसी भी तरह का वर्गीकरण कृत्रिम और स्थूल होता, उस से कोई खास मतलब न सघता, इसलिए सीधा-सादा सतासला रखना है ठीक मालूम हुआ। इस ग्रंथावली की सामग्री एकत्र करते समय कई स्थानो पा चकवार पाटना पड़ा। काशी, प्रया। कोर कानपुर के अनेक पुग्नकालयों और व्यक्तियों ने महयोग से ही यह कार्य संभव हो सका। इन सभी संस्थाओं और महानुभावों के प्रति कृल्ज्ञता ज्ञापन मेरा सुखद कर्तव्य है। काशी नागरीप्रचारिणी सभा के अर्थभाषा पुरका और प्रयाग-स्थित भारती-भवन पुस्तकालय के गुस्तकालाध्यक्षो ने स्वयं अमुविधा उठा कर मुझे विशेष सुविधाएं प्रदान की। पं० अयोध्यानाथ शर्मा (ध्या, दि. विभाग, सनातन धर्म कालेज, कानपुर ), पं. विश्वनाथ गौड़ ( प्राध्यापक, सनातन धर्म कालेज कानपुर ), बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा ( कानपुर के प्रद्धि यो: "गरिक और साहित्यप्रेमी ), तथा नवयुवक लेखक श्री नरेशवं चतुर्वेदी ने गाग्रो एकर करने में बड़ी सहायता की । अरोडा जी ने अन्यत मतपूर्व TARAIT भी आने लम्य संग्रह का उपयोग करने की सुविधा दी और कहाण' के 4- ४ अंक भी ना० प्र० सभा के लिए मुझे दिए। चतुर्वेदीजी ने कई लोगों की प्रतिलिपि उन्मुक्त भाव से मेरे लिए सुलभ कर दी। डी. ए. बी० कालेज, कानपुर के प्रयाक डा० प्रेमनारायण शुक्ल से भी सहायता मिली। हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के सहायक मन्त्री भाई रामप्रतापजी शास्त्री और प्रयाग विश्वविद्यालय के हिती प्राध्यापक सुहृतर डा० रघुवंश ने प्रतिलिपि संबंधी मुश्किलों को आसान कर दिया । रामरत्न पुस्तकालय, काशी के स्वामी उत्साही साहित्य प्रेमी श्री मुरारीलाल केडिया से 'मानस-विनोद' के प्रथम संस्करण की प्रति प्राप्त हुई। काशी हिंदू कि पविद्यालय के प्राध्यापक आदरणीय पं० विश्वनाथप्रसाद जी मिश्र, बंधुवर श्री करुणापति त्रिपाठी और संमान्य श्री कृष्णदेव प्रसादजी गौड़ से भी सहायता मिली। नागरीप्रचारिणी सभा के वर्तमान साहित्य मंत्री और विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के मेरे सहयोगी बंधु डा. श्रीकृष्ण लाल की ही प्रेरणा से 'सभा' ने 'प्रतापनारायण ग्रंथावली' का संपादन-कार्य करने के लिए मुझ से