पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/८०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

५८ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली होती है। लोग दाडी को भी मदं को पहिचान बतलाते हैं। पर कहाँ ऊर्द्धगामी केश कहाँ अधोमार्गी । मुच्छ के आगे सब तुच्छ हैं। यह न हो तो वुह क्या सोहै । बहुतेरे रसिकमना वृद्ध जन खिजाब लगा के मुंह काला करते हैं । यह नहीं समझते कि मुच्छ का एक यह भी रंग है जिस्की बदौलत गाँव भर नाती बन जाता है । बाजे मायाजालग्रस्त बुड्ढों को नाती से मुच्छ नुववाते बड़ा सुख मिलता है। पुपले-पुपले मुंह में तमाखू भरे हो हो हो २, अरे छोड़ भाई, कहते हुए कैसे "पुलक प्रफुल्लित पूरित गाता' देख पड़ते हैं ! कभी किसी बूढ़े कनवजिया को सेतुआ पोते देखा है ? मुच्छों से उरोती चूनो है, ह ह ह हर ! सब तो हुआ पर सबकी मुच्छे हैं कि-? मुच्छ का सविस्तर वर्णन उसो से होगा जो बाल की खाल निकाल सके । हमारे पूज्यपाद पंडित भाई गजराज प्रसाद जी ने यह बचन कसा नित्य स्मरणीय कहा है कि "गालफुलाउब मोछ मिरोरब एको काम न आई, तीनि बरे जब हुचु २ करिक रहि हो मुंह बाई।" श्री गोस्वामीजी का भो सिद्धान्त है कि “पशू गढ़ते नर भए भूलि सोंग अरु पूंछ। तुलसो हरि को भगति बिन धिक दाढ़ो धिक मूंछ ।' आजकल भारतवासियों की दुरदशा भी इसी से हो रही है कि यह निरे "हाय पाय के आलसी मुंहमा मुछे जायं।" धन बल विद्या सब तो स्वाहा हो गई, फिर भो एका करने में कमर नहीं बाँधते । भाइयो! भ्रातृद्रोह से भागो। यह बहुत बुरा है । मुच्छ बिन लेगा। प्यारे पाठक, खुश तो न होगे, कैसा बात का बतंगर कर दिया। क्यों बादाकशो हमको भी क्या दूर की सूझी। बस बहुत हुआ, २० दिसंबर को प्रयाग हिंदू समाज का महोत्सव है। तुम्हारी प्यारी मातृभाषा का उद्धारक प्रयत्न आरंभ होगा। अगर हिंदू कहलाते हो, अगर मुच्छ रखते हो तो तन मन धन से इस सदनुष्ठान में सहायक हो । आज स्वामी रामानुज शंकराचार्य केशक दयानंद प्रभृति आर्य गुरुवर के अमृतोपदेश की आधार बेद से ले के आल्हा तक को आधार सर्व गुणागरी नागरी देवी का काम है। इस अवसर पर लहेंगा पहिनना परम लज्जास्पद है । कुछ तो मुच्छों की लाज करो। खंड २, सं० ९, १० (१५ दिसंबर, सन् १८८४ ई.) रक्ताश्रु हाय ! हृदय विदीर्ण हुवा जाता है। आंसू रुकते ही नहीं । हाय २ सुनने से पहिले हो हमारा निरलब शरीर क्यों न छूट गया। हाय पापी प्राण तुम क्यों न निकल गए। हाय इस अधम जीवन का अंत क्यों न हो गया। हाय आशा की पर कट गई। बस अब क्या है, अभागा भारस डूब जा । अरे अब तेरा कौन है ? स्वामी दयानंद चल बसे।