पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/७०

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४८ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली नहीं है। इससे हमें अंगरेजों के अत्याचार से रोना न चाहिए और यह आशा भी न रखना चाहिए कि यह हमारी भलाई करने आए हैं। एलबर्ट बिल, शिक्षा कमीशन, बॅकस साहब का मुकदमा, सब इसी बात के उदाहरण हैं कि 'सबै सहायक सबल के' इत्यादि । कोई क्यों न हो हमारी सहायता के लिये अपनी हानि तथा अपने सजातियों की रूप हानि न करेगा। जब तक हम ऐसे ही बने रहेंगे जैसे आज हैं तब तक हमारा रोना वा चिल्लाना किसी के दिल पर बसर न करेगा। गत मास मे आसाम देश के एक गौरंडाधम बेव साहब ने एक कुली की युवती स्त्री को बलपूर्वक रात भर अपने शयनालय में रक्खा । उसके पति ने अपनी धर्मपत्नी का सतीत्वरक्षण करना चाहा । उसे भी पीट उठाया। स्त्री बिचारी लबा और दुःख के मारे मर भी गई पर किसी ऐसे तैसे ने यथोचित न्याय न किया। कौन करे ? 'कोउ न निवळ सहाय'। १० मई को अजमेर में स्टेशन पर भीड़ चढ़ी थी। एक गाड़ी में परसोत्तमदास नामक एक आर्य भाई ( जो एकजामिनर्स आफिस के क्लर्क थे ) बैठे थे। यों ही भीड़ के मारे आठ आदमियों के ठौर पर नौ जन थे तिस पर भी यहां के एसिस्टेंट स्टेशन मास्टर ए. एच. ब्राबर साहब ने दो और घुसेड़ने चाहे । तब बिचारे परसोतमदास जी ने कहा, साहब हमें तकलीफ होगी, अब भी तो नियमविरुद्ध एक मनुष्य अधिक है । इतना सुनते ही चांडाल ने उनको गालियां भी दी, पवित्र शिखा ( चोटी ) भी नोंची; लातें भी मारी और पुलिस के सिपुर्द भी करा दिया। हम तो जानते हैं, वहां भी हमारा हितू कौन बैठा है जो धर्माधर्म विचारेगा। प्यारे पाठक, इसी पर इतिश्री नही, भोर भी जो न हो सो थोड़ा है क्योंकि हम तो निर्बल हैं न ? हम तो प्रजा हैं न ? जब तक हम अपनी निर्बलता का निराकरण न करेंगे हम निरे पशु समझे जायेंगे । हम एक महादुर्बल पशु समझे जायंगे। यदि हम अपना पशुत्व दूर किया चाहें तो केवल सभाओं में लेकर देना या अखबारों में लंबे २ लेख देना, सरकार से दुःख रोना मात्र लाभमनक न होगा। इसके लिए तो आँखें मींचकर, आगा पीछा कुछ न सोचकर, जैसे हो तैसे, भातृस्नेहवर्धन में जुट जाना चाहिए । नहीं तो कोरी बातों से कभी कुछ न होगा। हमारी नैवल्य का महत्तम कारण केवल देशभक्ति का अभाव है। नहीं तो हम लाख गए बीते हैं तो भी कई बातों में विदेशियों से श्रेष्ठ हैं। हाय, हम अपने भाइयों के सुख दुःख में सहानुभूति करना नहीं जानते । हाय, हम देशहितैषी केवल मुख और लेखणी मात्र के हैं। नहीं तो जिस दुष्ट ने हमारे देशभाई की स्त्री का पातिब्रत भ्रष्ट किया उससे बढ़के हमारा शत्रु कौन होगा ? क्या ऐसे पुरुषों के दमन करने में तन, मन, धन न लगा देना चाहिए? पर बिना सच्चे देशभक्त के यह काम हर एक का नहीं है। ऐसे ही जब अजमेर स्टेशन के ब्रार ने परसोतम भाई की दुर्दशा की थी उसी समय 'भारतमित्र' के एक करेस्पाडिट साहब उपस्थित थे । वह लिखते हैं-'स्टेशन के बाहर हमारे भाई को इस प्रकार मारते तो मैं और मेरा भाई उसको बाबा ही बना कर छोड़ते। परंतु क्यों कर, दुष्ट रेलवे एक्ट हृदय में भरा था इससे रक्त का घूट भीतर ही भीतर पिया किये'। हमारी समझ में जो साहब की सहबई उस अवसर पर निकाल गली जाती तो पीछे को आँख कान