पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५६१

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५३५ परिशिष्ठ ]. निहचल निहछल रूप सों, निज तन मन धन लाय । सबके सब विधि सब समय, सब कोउ होहिं सहाय ॥ ९ ॥ श्री हरि शशि के तत्व कह, समुझहिं सब भक्ति भांति । सदा सबै कहुँ, सुनि परै, धर्म प्रेम शुम शांति ॥ १० ॥ नव संभाषण जगदीश्वर को धन्यवाद देना आस्तिकता की पद्धति का ग्क्षण मात्र है नहीं तो प्रति क्षण अनंत उपकार का धन्यवाद एक मुख से हो ही क्योंकर सकता है। कहां परम पवित्र परमानंदमय प्रेमदेव का धन्यवाद और कहां यह मुहं, जिसे खपुष्प न्याय का अवलंबन करके मिथ्या भाषण और परनिंदादि के दोषों के बचा हका भी मान लें तथापि प्रत्यक्ष देखते हैं कि कैसा पवित्र है । इससे इस विषय में बोलना ही बायचेचीपन है। रहा अपने साठ को धन्यवाद देना, वह भी सभ्यता की रीति का निर्वाह मात्र है। नहीं तो हमारी खरी २ दो टूक चलाफाड़ बातों पर रुचि रखने वालों को झूठमूठ के धन्यवाद अथवा आशिर्वाद क्यो रुचने लगे? जब तक आपने हमारे साथ कोई विशेष रूप से भलाई नहीं की तब तक हमारा धन्यवाद व आशिर्वाद देना एक रूप की खुशामद है और खुशामद वह गुण है जिसमे हमें आप निरा मूर्ख समझिये तो हम अपना गौरव समझेंगे। यह गुण तथा इसके ग्राहक परमेश्वर न करे कि हमे प्राप्त हो । हम अपने थोड़े से उन्ही सहायकों के मध्य आनंदित रहना चाहते हैं जो हमारे ऐसे साहंकार कथन का आदर करते ठों कि हमारी बातें आपकों भाती हैं इससे आप हमारे ग्राहक हैं, इसमें धन्यवाद काहे का ? हां हमारे बचनो का पूर्ण रूप से अनुमरण कीजिये अथवा हमी को चिरस्थायी रखने का उद्योग करते रहिये तो हम क्या है सभी धन्यवाद देंगे-पर अतः अभी बक हमे ऐसे लोग बहुत ही थोड़े मिले हैं, सो भी खुशामद और खुशामदियों को तुच्छ समझने वाले । अस्मात् हम यह खाता ही नहीं रखना चाहते । हां सहयोगियों में से 'सर्वहित', 'मित्रविलास' और 'बिहारबंधु' को धन्यवाद देगे क्योंकि उन्होने हमारी सहानुभूति की है, सो भी उस दशा मे जब कि हम कभी उनके साथ विशेष संबंध का प्रदर्शन नहीं कर सके। केवल पत्र का बदला ही रक्खा है। इस पर भी 'सर्वहित' महाशय 'ब्राह्मण' की ब्रह्मलोक यात्रा के समाचार पर शोक ही नहीं प्रकाश करते वरंच पुनर्जीवन की आशा करके साहाय्य प्रदान का बचन भी देते हैं । फिर हम उनका गुण क्योकर न मानें ? पर हां, यस्मात् सब पत्रों का मुख्य कर्तव्य यही है कि एक दूसरे की उन्नत्यवनति में साथ देने की बातें ही न बनावे किंतु काम पड़ने पर पूर्ण रीति से काम आ ! अतः कोरे धन्यवाद को व्यर्थ समझ के हम प्रार्थना करते हैं कि परमात्मा समस्त हिंदी पत्रो को पारस्परिक सहायता का सच्चा उदाहरण