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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंपावली विज्ञापन (जरा पढ़ लीजिए) कई मास से 'ब्राह्मण' में श्री हरिश्चन्द्र संवत ५ छप रहा है पर चाहिए था ६, किंतु इस मास ( जनवरी ) से ७ आरम्भ हुआ है, 'अतः जो सज्जन 'ब्राह्मण' की जिल्द बंधवा के रखते हैं उन्हें सुधार लेना चाहिए पर जो रदियों में फेंक देते हैं उनकी बला 'जैसे ५ वैसे ६ वैसे ७ । छ मास इस वर्ष के भी बीत गए, कहिए दक्षिणा अब भी भेजिएगा कि यों ही झिखाते रहिएगा? इसमें कोई सन्देह नहीं है, बनावट न समझिएगा कि अब इ० पत्र के ग्राहक इतने थोड़े हैं कि यदि सबसे मूल्य प्राप्त भी हो जाय तो भी इस वर्ष ५० रु० से कम घाटा पड़ना सम्:व नहीं है । यद्यपि घाटा हर साल पड़ता रहा है पर कभी बनावटी दोस्तों ( साझियो ) के आसरे भुगत लिया, कभी यह समझ के झेल डाला कि आगामी वर्ष प्रबंध ठीक रखेंगे और ग्राहक बढ़ाने का यत्न करते रहेंगे तो सब घटी पूरी हो जायगी। और इसी विचार पर गत छः वर्ष में पांच सौ से ऊपर रुपया केवल अपनी गांठ से दिया भी, पर अब मेहनत करके, रुपया लगा के भी अपनी सरस्वतो की विडंबना असह्य है, इससे इरादा तो इसी मास मे बन्द कर देने का पा, पर करें क्या, पांच सात सहृदयों को इस पत्र का एकाएकी अन्त हो जाना अत्यन्त कष्टदायक होगा इससे कुछ हो इस साल तो जैसे तैसे चलाते हैं, पर जहां यह वर्ष समाप्त हुआ वहीं ब्राह्मण के जीवन की समाप्ति मे सन्देह न समझिए । हां, जिन्हें इससे सचमुच ममत्व हैं वे ग्राहक बढ़ा के जीवित रख सकते हैं, पर हममें अब होसला नहीं रहा। बाबू राधा मोहन साहब कार्यवशतः बाहर चले गए हैं अतः ब्राम्हण सम्बन्धी धन वा पत्रादि अन्य विज्ञापन न निकलने तक इस पते से भेजिएगा- प्रतापनारायण मिश्र, _ 'ब्राम्हण' आफिस, कानपुर । खं० ७, सं० ६ ( १५ जनवरी, ह. सं० ७) अवश्य देखिये हमारे कई मित्रों ने 'ब्राम्हण' के बन्द हो जाने की सूचना पढ़ में खेद प्रकाशपूर्वक पूछा है कि क्या किसी उपाय से इसे बचा सकते हो अथवा सात वर्ष के पाले पोसे बच्चे को एक साथ ही कठोरता धारण करके विसर्जित कर दोगे ? इसके उत्तर में हम निवेदन करते हैं कि हमारा हृदय घटी उठाते २ और धोखा खाते २ निस्सन्देह ऐसा हो गया है कि मोखिक आश्वासन से अब इस पर कुछ असर नहीं हो सकता। किन्तु बाद कर देने का जब कि दूसरों को शोक है तो हमें क्यों न होगा जिन्होंने सकड़ों ऊंच