पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५५२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

५२६ प्रतापनाराबण-बावनी सूचना हमने कई बातें सोच के ब्रह्मघाती नामक पुस्तिका पने भेज दी। अगस्त में प्रकाश भी कर देंगे। अतः सबको विदित करते हैं कि हम धनाभाव से विन दामों तो दे नहीं सकते पर 'बाह्मण' के ग्राहकों और हिंदी पत्र संपादकों को केवल साफ महसूल पर औरों को ) मूल्य पर भेजेंये । पुस्तक बहुत उत्तम नहीं है, पर लाभ अवश्य उसके देखे से इतना है कि अनेक गुप्त ठगों के नाम ग्राम और कुछ २ चरित्र ज्ञात हो जाने से उनके साथ व्यवहार करते समय सावधानी रहेगी। सं० ब्रा० खंड ४. सं० १२ ( १५ जुलाई, ह० सं० ४ ) ब्रह्मघाती हमने 'बाह्मण' के चौथे खंड में कभी इस नाम की पुस्तक का नोटिश दिया था। इस पर हमारे मित्रों ने उसके देखने की इच्छा प्रकाश की है। पर हम उसे कई कारणों से अलग नहीं छपवा सकते अतः 'ब्राह्मण' हो में उनके थोड़े २ नाम प्रकाश किया करेंगे। इसरे पत्रों के संपादक तथा संथकार तया हमारे ग्राहकों को चाहिए कि इनके साथ व्यवहार करने में सावधान रहें। ईश्वर किसी युक्ति-विशेष से ब्राह्मण को चिरंजीव रक्खे या काई समर्थ व्यक्ति महायक हो जाय तो और बात है.. नहीं तो इन बेईमानों ने 'ब्राह्मग' के प्राण लेने में कोई कसर नहीं रक्खी । जिन के हम देनदार हैं उन्हें कौड़ी २ बगे। पर हम झूठे वादे इन्ही पापियों की बदौलत करते रहे हैं। हमने बहुत से सज्जनों का शील तोड़ के वेल्यू पेएबल पोस्ट द्वारा दाम लिए हैं। यह भी इन्हीं जमामार नाविहन्दों को दया से । हम नम्रता के साथ 'ब्राह्मण' के लहनदारो और सच्चे रसिकों से क्षमा मांगते हैं और सबको पुनः सावधान करते हैं कि बनी इन दो चार पर के लिये बेईमानी करने वालों से । यह हम नहीं कह सकते कि यह स्टयं 'ब्राह्मण' का धन हजम कर बैठे या इन ये चारों के नाम से दूसरे किसी ने जमा गारी। बंड ५, सं. २ (१५ सितंबर, ह० सं० ४) महाविज्ञापन हमने बेईमान ग्राहकों का नाम तो रजिस्टर से उड़ा दिया, ब्रह्मघातियों में धीरे २ छाप देंगे । पर जो महाशय 'ब्राह्मण' के सहायक हैं उनसे निवेदन है कि कृपा करके अब दक्षिणा शीघ्र भेजें और जहां तक हो सके नए ग्राहक बढ़ाने का यत्न करें। तभी 'ब्राह्मण' का चलना संभव है !