पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५४३

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परिशिष्ट ] ५१० तो क्षमा कीजियेगा। सम्गता के विरुद्ध न होने पावेगी। वास्तविक बैर हम को किसी से भी नहीं है, पर अपने करम लेख से लाचार है। सच २ कह देने में हम को कुछ संकोच न होगा । इस से जो महाशय हम पर अप्रसन्न होना चाह पहिले उन्हें अपनी भूल पर अप्रसन्न होना चाहिये । अच्छा लो, हमको कहना था सो कह चुके । आशिरवाद "सुग्वी रही शुभ मति गहौ, जीवहु कोटि बरीष। धन बल की बढ़ती रहै ब्राह्मण देत अशीष ॥" ____ खंड १, संख्या १; ( १५ मार्च, सन् १८८३ ई.) जरा सुनो तो सही कानपुर इाग बड़ा शहर है कि बाहर वाले इमे छोटा कलकत्ता कहते हैं। इस पर भी यहाँ हिन्दू ही अधिक सम्पन्न हैं। पर कैसे अफसोस की बात थी कि इस जिले भर मे हिनती का पत्र एक भी नहीं। हिन्दी के पत्र से क्या लाभ होता है सो फिर कभी लिखेंग । बुद्धिमान लोग आप विवार देखें कि हमेशा नई २ दिल बहलाने की बातें, अपनी मातृ राषा को अच्छे से अच्छे मुहावरे, देश सुधारने के उपाय इत्यादि उन्हीं अम्बबारो का काम है। हम अपने मुंह मियाँ मिळू नही बनते पर इतना कहना अनुचित नहीं समझते कि यह ब्राह्मण गुग सम्पन्न नहीं है तो निरा शंग्व भी नहीं है। पढ़ने वाले आप इंसाफ कर सकते हैं। कुछ न सही तो भी इस जिले की इस पत्र से कुछ शोभा ही है, पलं नहीं। साल पूरा होने आया, कुछ न कुछ इस के सब से लोगों को लाभ ही हुवा होगा, हानि किसी तरह की नहीं। इस पर भी जो इस के मूल्य पर ध्यान दिया जाय तो एक रुपया साल के हिसाब से महीने में सिर्फ पांच पैसे और एक पाई होती है। गवई गांव के लोग मंगापुत्र को कम से कम पांच टका की बछिया पुण्य करते हैं, का हिन्दुस्तानी रईश लोग इस विद्यानुरागी 'ब्राह्मण' को महीने भर में बछिया के भी आधे दाम नहीं दे राव ते ? रईसों की कौन कहे इस का दाम तो लड़के भी दे सकते हैं । यदि समझें कि यह ब्राह्मण हमारा है, हमारे देश का है, हमारी भाषा का है, हमारी भलाई चाहता है, तो पांच पसा एक पाई महीने के हिसाब से आधी पाई रोज बंगाल से कंगाल के लडके तक दे सकते हैं और अपने देश का हितसाधन कर सकते हैं। हम तो समझते हैं कि लोग इसकी अधिक सहायता करेंगे । दूसरे वर्ष से जो एक हजार ग्राहक हो गये तो इसे १५ दिन में प्रकाश करने का विचार है । पर अफसोंस, बहुतेरे सजनों ने इसका मूल्य आज तक नहीं भेना । गरे भाई, हमने इस पत्र को अपने लाभ की गरज से नहीं निकाला। ले दै बराबर हो जाय बही गनीमत है। यदि बढ़ेगा तो दूसरी पुस्तके भी आप लोगों को भेंट किया