पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/५४

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बेकाम न बैठ कुछ किया कर ___किसी व्यवहारकुशल महात्मा का यह सिद्धांत कितमा उत्तम है कि उस पर दृढ़ चित्त होकर बर्ताव करने वाला कभी न कभी अवश्य ही कृतकार्य होता है। संसार में ऐसा कोई काम ही नहीं है जो मनुष्य न कर सके। लोग कहते हैं पत्थर पर कोई वस्तु मही जम सकती। पर हमारी समझ में निस्संदेह जम सकती है। यदि कोई निरंतर बीज और जल छोड़ता रहे तो कुछ दिन में जल के योग से वह बीज सड़ के मिट्टी हो जायगा। उस पर क्या बात की न जमै । बहुतेरे आलसियों का मत है कि 'ह है सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै शाखा ॥' हम कहते हैं कि इस बचन का वे अर्थ ही नहीं समझते। इसका अभिप्राय यह है कि ईश्वर ने जिस पदार्थ में जैसी शक्ति रक्खी है उसके विपरीत न होगा। इससे प्रत्येक वस्तु का स्वाभाविक गुण जानने का यत्न करना चाहिए। तदनंतर उसके अनुकूल उद्योग करते रहना चाहिए। फिर निश्चय कार्य सिद्ध हो ही रहेगा। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, ढंचरा चला जाय, तार न टूटने पावे तो उद्योग में परमेश्वर ने कार्य सिद्ध की शक्ति रखी है। मनुष्य को हतात्साह तो कभी होना न चाहिए। जिस बात में मनसा वाचा कर्मणा जुट जाओगे, कर ही के छोड़ोगे । शिक्षा कमीशन ने देवनागरी का तिरस्कार कर दिया । कुछ परवा नहीं। उसके सच्चे रसिकों का ठेंगा निराय ही कौन नहीं जानता 'श्रेयांसि बहु विघ्नानि ।' फिर सही, दे मेमोरियल पर मेमोरियल, दे लेख पर लेख, दे चंदा पर चंदा । देखें तो सरकार कहाँ तक न सुनेगी ! और सरकार न भी सुने, जब देशहितशो महाशय सेतुआ बाँध के पीछे पड़ जायेंगे, नगर २ ग्राम २ जन २ में नागरी देवी का जस फैला देंगे, आप ही स्वदेश भाषा की उन्नति ही रहेगी। आप ही उरदू बीबी के नखरे सबको तुच्छ जंचने लगेंगे। कही उद्योग भी निष्फल हुआ है ? इसी प्रकार इलबर्ट ने गुड़ दिखा के इंट मारी है। इस बात की भी सोच वृथा है । अंगरेज न हमारी जाति के, न हमारे देश के, न हमारे धर्म के । उनकी बराबरी से हमें क्या ? हम ऐसे काम ही न करें जिससे उन्हें हमारा मुकद्दमा करने की नौबत आवे। उन्हें अंगरेज अपराधियों का इतना पक्षपात कि हिंदुस्तानी हाकिम, बिना यूरोपियों की पंचायत बैठे, उनका नाय ही न कर सके ! क्यों न हो 'घर का परसया अंधेरी रात' । क्या हम किसी दूसरे के प्रजा हैं ? हमें भी सरकार से निवेदन पर निवेदन इस बात के लिये करना चाहिए कि हमारे मुकद्दमे अंगरेज हाकिम बिना स्वदेशियों की पंचायत के न कर सकें। एक बार नहीं सौ बार, एक प्रकार नहीं सहन प्रकार, सरकार को समझा कि हमारा भी कुछ हक है। निश्चय है सर्कार अवश्य सुनेगी। और न सुने तो