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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रथापनारायण-पावली उत्तम म हों तो घर की दृढ़ता और उत्तमता असंभव है । इसी प्रकार यदि हमारे नित्य के व्यवहार उत्तम रीति से निबमबद्ध न हुए तो नैमित्तिक कार्यों का यथोचित रूप से पूर्ण होना अनिश्चित समझना चाहिए। इस से जो लोग अपने जीवन की सार्थकता के हेतु चाहते हैं कि दो चार स्मरणीय कार्य कर जायं उन्हें उचित है कि अपने प्रत्येक काम पर प्रतिक्षण ध्यान रखा करें। जो कुछ करें बहुत सोच बिचार के करें जिस में यथासामध्यं कोई काम ऐसा न होने पावे जो बुद्धिमानों के ठहराए हुए नियमों के विरुद्ध हो। वे नियम प्रायः पढ़ने लिखने वालों से छिपे नहीं हैं। पर स्मरण दिलाने की भांति हम यहां पर संक्षेप से लिख देना उचित समझते हैं। सोकर उस समय उठना चाहिए बब घंटा डेढ़ घंटा रात्रि शेष रहे । और उठते ही वाह्य के लिये न दौड़ने चाहिए किंतु दश पांच मिनट ठहर के आलस्य को निवारण कर के जाना उचित है। फिर हाथ मुंह भली भांति धो के मीम, करंज अथवा बबूल की दातून से मुस्ख शुद्ध कर के यदि शीत अधिक न हो तो उसी समय दो चार मिनिट के उपरांत स्नान भी कर लेना उचित है, नहीं तो नो दस बजे के करीब स्नान करना भी दूषित नहीं है । यहां यह भी स्मरण रखना चाहिए कि नहाने के लिये 'घर के कुएं की अपेक्षा गंगा जमुनादि बड़ी नदियां अत्युत्तम हैं, पर यदि इनका मिलना कठिन हो तो कुध हो का जल सही, पर हो ताजा और मीठा । जाड़े के दिनों में गरम पानी से नहाना भी बुरा नहीं है, पर इतना गरम न होना चाहिए कि सहा न जाय, नहीं तो मस्तिष्क और नेत्र को बड़ा हानिकारक होता है । स्नान के आधे घंटा पहिले तिली, नारियल अथवा सरसों का तेल शिर और शरीर में लगाना बड़ा गुणकारक है तथा सुगंधित साबुन भी यदि मिल सके तो नित्य नहीं दूसरे चौथे दिन अवश्य लगाना पाहिए, एवं नहाना भी बहुत से जल से भली भांति शिर से उचित है। तदनंतर स्वच्छ अथच कोमल वस्त्र से देह अच्छे प्रकार पोंछ के यदि अपनी जाति और समाज में चाल हो तो श्वेत चंदन ( जाड़े में केसरयुत् ) अथवा भस्म बहुत सी मस्तक और वक्षस्थलादि पर लगाना आरोग्यबर्द्धक है । यह काम सूर्योदय के लगभग पूरे करके नगर के बाहर मैदान वा वाटिका की स्वच्छ वायु सेवन के लिये निकल जाना चाहिए । निरोग रहने के निमित्त यह यत्न बहुत ही उत्तम है। सवैद्यों का विचार है कि प्रात:काल की पवन स्वर्गीय पवन है । उस के द्वारा जीवधारियों के तन और मन प्रफुल्लित होते हैं । इस के अतिरिक्त स्नान करने के उपरांत अथवा दो तीन घंटा पहिले म्यायाम भी कर्तव्य है। पर इतना ही मात्र जितने में बहुत थकाहट न जान पड़े । अनुभवी लोगों का बचन है कि कम से कम पांच अधिक से अधिक चालीस तक डंड मुगदर बैठक करना चाहिए। और इस के उपरांत जब तक भली भांति पकावट दूर न हो जाय कुछ भी खाना पीना उचित नहीं है । केवल स्वच्छ वायु में दौड़ते वा टहलते रहना चाहिए । इस अवसर पर यदि अच्छी चिकनी सुगंधित मट्टी लोटने को मिले तो अत्युत्तम है । इस के अमंतर भोजन का समय है। एक तो सात आठ बजे कुछ थोड़ा