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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनाराबन-अंपावली दौड़ती है। फारस अरब और इङ्गलिस्तान के कषि जब संसार की अनित्यता का वर्णन करने लगेंगे तब कबरिस्तान का नकशा खींचेंगे क्योंकि उनके यहां श्मशाम होते ही नहीं हैं। वे यह न कहें तो क्या कहें कि 'बड़े २ बादशाह खाक में दबे पड़े हैं। यदि कब्र का तख्ता उठा कर देखा जाय तो शायद दो चार हड्डियां निकलेंगी जिन पर यह नहीं लिखा कि यह सिकंदर को हड्डी है, यह दारा को इत्यादि । हमारे यहाँ उक्त विषय में श्मशान का वर्णन होगा-शिर पीड़ा जिनकी नहिं हेरी। करत कपाल क्रिया तिन केरी ॥ फूल बोझहू जिन न संभारे । तिन पर बोझ काठ बहु डारे । इत्यादि । क्योंकि कत्रों की चाल यहाँ विदेशियों की चलाई है। यूरोप में सुंदरता वर्णन करेंगे तो अलकावली का रंग काला कभी न कहेंगे और हिंदुस्तान में ताम्र वर्ण के केश सुंदर न समझे जायने । ऐसे ही सब बातों मे समझ लीजिए तब जान जाइएगा कि ईश्वर के विषय में बुद्धि दौड़ाने वाले सदा सब ठौर मनुष्य ही हैं। अतः सब कहीं उसके स्वरूप को कल्पना मनुष्य के स्वरूप के समान की गई है। क्रिस्तानों और मुसलमानों के यहाँ भी कहीं २ खुदा के दाहिने तथा बाएं हाथ का वर्णन ! बरंच यह खुग हुवा लिखा है कि उसने आदम को अपनी सूरत में बनाया। पादरी साहब तथा मौलवी साहब चाहे जैसी उलट फेर की बातें कहें पर इसका यह भाव कहीं न जायगा कि अगर खुदा की कोई शक्ल है तो आदम ही की सी शक्ल होगी। हो चाहे जैसा पर हम यदि ईश्वर को अपना आत्मीय मानेंगे तो अवश्य ऐसा ही मानना पड़ेगा जैसों से प्रत्यक्ष में हमारा संबंध है। हमारे माता पिता, भाई बहिन, राजा रानी, गुरु गुरुपत्नी इत्यादि, जिनको हम अपने प्रेम प्रतिष्ठा का आधार मानते हैं, उन सब के हमारी ही भांति हाथ पाव इत्यादि है तो हमारा सर्वोत्कृष्ट बंधु कैसा होगा? बस इसी मूल पर सब सावयव मूर्तियां मनुष्य के से रूप की बनाई जाती हैं ! विष्णुदेव की सुंदर सौम्य प्रतिमा प्रेमो- त्पादनार्य है क्योंकि खूबसूरती पर चित्त अधिक लगता है। मैरवादि की भयानक प्रति- कुति इस बचना के अर्थ है कि हमारा प्रभु हमारे शत्रुओं के भयकारक है अथवा हम उसकी मंगलमयो सृष्टि में विघ्न करेंगे तो वुह कभी उपेक्षा न करेगा, क्योंकि वुह क्रोधी है। इसी प्रकार शिवमूर्तियों में भी कई विशेषता है जिन के द्वारा हम यह उपकार लाभ कर सकते हैं। शिर पर गंगा होने का यह भाव है कि गंगा हमारे देश की संसार पर- मार्य की सर्वस्व हैं। पापी पुण्यात्मा सब की सुखदायिनी हैं। भारत के सब संप्रदायों में माननीया हैं । ( गंगाजी की महिमा अनेक ग्रंथों में वर्णित है। जल तथा बालुका अनेक रोग नाश करती है। अनेक नगरों की शोभा, अनेक जीवों की पालना इन्हीं पर निर्भर है। मरने पर माता पिता सब छोड़ देंगे पर गंगा माई अपने में मिला लेंगी इत्यादि अनेक बातें परम प्रसिद्ध हैं । अतः इस विषय को यहां बहुत न बढ़ा के आगे चलते हैं।) और भगवान भवानी भावन विश्वव्यापी हैं तो विश्वव्यापक की मूर्ति कल्पना में जगत् का सर्वोपरि पदार्थ ही शिरस्थानी कहा जा सकता है। पुराणों में गंगा जी की उत्पत्ति विष्णु भगवान के चरणारविंद से मानी गई है और शिव जी को परम वैष्णव लिया है। उस परम वैष्णवता की पुष्टि इस मे उत्तम और क्या हो सकती है कि यह उन के घर-