पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/४४८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

४२४ [प्रसापनारायण-ग्रंथावली बैंक नौकरी करो ही मत, न करोगे तो जियोगे कैसे ? किंतु यह अभीष्ट है कि ऐसा उद्योग करो कि जिससे देश का धन देश ही में रहे।। राज्य दूसरों का है, कुछ न कुछ धन तो अवश्य ही विदेश जायगा। यह बात तो पत्थर की लकीर ही है। पर ऐसा .. उद्यम करो, जिससे यथोचित द्रव्य के अतिरिक्त एक कोड़ी भी विदेश को न जाय । यदि सैर ही के प्रयोजन से विलायत जाते हो तो तनिक चेत करके देखिए तो हमारे वैसे दिन नहीं रहे । यदि ऐसी ही इच्छा है तो भी वृंदावनादि तीयों को रमणीय करने की चेष्टा कीजिए। नहीं तो यह पवित्र स्थान एक तो वैसे ही पूर्वापेक्षी कुछ न्यूनतर रमणीय हो गए हैं, दूसरे तुम और कर दोगे । मुसलमानों के अत्याचार से तो मंदिर भग्न हुए, अब तुम्हारे बिलायत आदि जाने के व्यय में अकेले तीथं ही क्या तुम्हारे सब ग्रहादि प्राणरहित देह के समान हो जायंगे । जिस दिन तम विलायत में जाकर अपने आचार व्यवहार पलाओगे, और जैसे अन्य देशियों की रीति नीति तुम सीरूते हो वैसे दूसरों को भी अपनी नीति सिखाओगे, उस दिन तुम्हे कोई बुरा न कहेगा और कोई जातिभ्रष्ट न कहेगा । बोल श्री नंदनंदन की जै-- खं० ९, सं० ९ ( अप्रैल, ह० सं० ९) आप बीती कहूं कि जग/ती जब तक हमारा सम्बन्ध जगत के साथ बना हुआ है तब तक आपबीती भी जग. बीती का एक अंग है। इसमें थोड़ी सी यह भी सुन लीजिए क'न जाने पेट पड़े कुछ गुण दे। बात यह है कि जो लोग केवल हाथ पांव से परिश्रम करते हैं और मस्तिष्क से बहुत काम न लेकर केवल शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति से प्रयोजन रखते हैं तथा यथासाध्य आहार बिहार के नियमों का पालन बरंच लालन करते रहते हैं वे बहुधा नीरोग होते हैं। पर जिन्हें बाह्य जगत की इतनी चिता नहीं रहती जितनी दिमागी दुनिया को रहती है उन्हें कोई न कोई रोग न हो तो आश्चर्य है और यह इसी दूसरी श्रेणी के पांचवें सवारों में हम भी हैं। इससे रोगराज की हम पर भी यों तो साधारण दया रहती ही है किंतु तीसरे चौथे वर्ष विशेष कृपा हो जाती है। जिसमें आप राजसी ठाट बाट में चार छः महीने के लिए आ जाते हैं और उनकी भेंट के लिए रुपया तथा भोजन पान के लिए अपना रक्त मांस हमें अवश्य अर्पण करना पड़ता है। बरंच उनके साथ नाना कल्पनामय विश्व में घूमते घामते अज्ञात लोक के द्वार तक भी कई बार जाना पड़ता है। उन दिनों हमें इस पत्र के संपादन अथवा दूरस्थ मित्रों के • 'निबंध-नवनीत' से उद्धृत ।