पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली कचहरी । 'फक्कड़ भाई यह किस पर फबतियां हो रही हैं ?' दो एक थोड़ी हैं, हम कहते जाय तुम गिन चलो। पहिले चलो नाज की मंडी। बैपारी राम तो जानते हैं भाई अच्छी मोने की चिड़िया हाथ लगो है, रुपया उधार दिया है जो मांगते तक नहीं, आओ तो कुछ नजर करें, जावो तो कुछ भेट धरै, जब तक रहो आँखों पर रक्वे, बात २ पर कहैं कि 'हमार तुम्हार घर का वास्ता है।' यह नहीं समझते कि 'बनिया का बेटा कुछ तो समझकर फिसल पड़ा ।' भला रुपए की आइत पर यह धम २ कैसे सहे ना सकते हैं, वहाँ कनवा बुधिया मासा चलता है। ब्योपारी से कहा बीस सेर बिका और ग्राहक से इशारा किया 'कनवा', बस 'खग जाने खग ही को भाषा ।' बिचारा गंवार व्योपारो क्या जाने कि इस गूढ मंत्र का यह अर्थ है कि छटाक रुपया तो अढ़तिया जी के बाप का हो गया। जहां कहा 'मासा' बस पौवा रुपया अलग ही अलग चित्त हुआ। यह तो व्योपारी का माल बेचने का हतखंडा है । जब अपना माल बेचेंगे तब बानगी और दिखाई तुलाय और दिया। 'गुरू यह तो विश्वासघात है !!' अवे चुप ! बनियई के पेंच हैं उल्लू, कही तुलसी सोना डाले रोजगार होते हैं । ____अब घी वाले की दूकान पर देखो चलें । ग्राहक के दिखाने को भंडिया पर ताजा अरंड का पता बंधा हुआ है, मानो अभी दिहात से आया है। जहां खोल के देवा, घी क्या है घी का बाबा है, आंच दिखाते ही जानोगे । 'गुरु यह पहेली सी क्या कहि गये, घी का बाबा तो मट्ठे को कहते हैं क्योंकि मट्ठे से मक्खन और मक्खनी से घी होता है'। अबे ऐसा नहीं कहते, देख तो कैसा घी धरा है । सच है. सच है, दानेदार नहीं बरुक दाने का जीव और घी का जीव एक हो गया है, तभी तो रङ्गत तक नहीं बदली । खासा भैंस का सा घी बना है। भैंस का न सही यह लेव गाय का घी है। इसमें भी गुल्लू का तेल मिला होगा । हाय ! इन रतन में जतन करने वालों की क्या दशा होगी नारायण ! चलो २ ऐसा घी खाये बिना क्या डूबा जाता है। दूध खाया करेंगे। दूध वाले ही कौन दूध के धोये बैठे हैं, वहाँ भी 'सेरुक दूध अढ़ यक पानी । धम्मक धम्मक होय मथानी' । की धैना है। उन्हें कुछ कम समझे हो, वह भी बकरी भेंडी का दूध मिा २ के एक २ के दो २ करते हैं। तभी तो घी दूध का गुन जाता रहा । हाय ! इन ठगों को खबर सर्कार क्यों नहीं लेती कि अभी दूब का दूध पानी का पानी हो जाय । सर्कार को क्या पड़ी है कि छोटी बातों में अपना समय खोवै, सर्कार को अपने लाइसेंस टैक्स से काम है कि तुम्हारे धंधों से ? फिर क्या ग्राहक लोग नहीं जानते कि राक्षसों के मारे गाय भैस तो बचने ही नहीं पाती घो दुध आवै कहाँ से ? ऐसी ही शरीर रक्षा करनी हो तो हिंदू भाई यदि अधिक न हो सके तो एक गाय पाल ही लें, जिसमें शरीर रक्षा, स्वादिष्ट भोजन और धर्म तीनों मिलैं । सर्कार से किस किस बात की शिकायत करते फिरोगे । यहाँ तो यह कहावत हो गई है कि 'पेशे में सभी चोरी करते हैं'। हलवाई को दूकान पर जाओ, सब चीज ताजी घी को बनी तैयार है, पर खाते हो जानोगे । जो तीन ही दिन की हो तहाँ तक ही कुशल समझो। सेर भर घी में पावभर तेल मिला हो तो तब तक तो जानो बड़े ईमानदार का सौदा है नहीं