पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३३६
[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली गांव गोहारि" का नमूना बनना है । इस से धुपचाप बैठे रहना चाहिए, दुनिया भर का इंतजाम परमेश्वर ने तुम्हारे ही माथे नहीं पटक दिया। काल कम और भाग्य में जो कुछ होगा हो रहेगा। चार दिन की जिदगी खाने कमाने और आनंद से दिन बिताने को बनी है न कि "काजी जी क्यों दुबले शहर के अंदेशे से !" पर हाँ जो यह उपदेश न सुहाते हों और मातृभूमि का सच्चा स्नेह हृदय में तनिक भी जड़ पकड़े हो तथा अंत:करण की आँखें कुछ भी खुली हों, इस से भूतकाल की दशा से वर्तमान गति का मिलान करने पर भविष्यत में काल को विकराल मूति दिखलाई पड़ती हो एवं उस से बचने मथच अपने गृह कुटुंब, जाति देश वालों को बचाने का उपाय अभिप्रेत होता हो तो स्मरण रक्खो कि 'काल्हि करते आज कर आज करते अन'। मरते देर नहीं लगतो और मर जाने पर कर्तव्य कदापि नहीं हो सकता तथा जो करणीय कामों को किए बिना केवल मनोर्थ ही करता २ मर जाता है वह अपने कलुषित कलंकित मुख को किस बिरते पर ईश्वर के सामने ले जायगा? अतः सभी इसी क्षण सो काम छोड़ के, हजार हज कर के कटिबद्ध हो जाना उचित है। फिर "चौतरा आप ही कोतवाली सिखा लेगा", किसी से पूछने की आवश्यकता न रहेगी कि क्या करना चाहिए, क्योंकर करना चाहिए ? किंतु यदि हमारे वचनों पर श्रद्धा हो तो सुन रक्खो-अपना भला अपने ही हाय होता है। भारत की वास्तविक उन्नति जब हुई है और जब होगी तब उन्ही के करने से हुई है और होगी जिनकी हजारों लाखों पीढ़ी भारत ही की मट्टी से हुई और उसी में समा गई तथा आगे भी इसी पवित्र रज में उत्पन्न हो के विलीन हो जायंगी। दूसरे देश में चाहे वाणिज्य के लिये जायं चाहे विद्या सीखने जार्य चाहें गुलाम बन के जायं चाहे राजा हो के जायं पर कहलावेंगे भारत संतान हो। उन्हो का अधिकांश जब केवल अपने भरोसे और अपने ढंग पर अपनी उन्नति के लिए तन मन धन प्रानपन से दिन रात सोते जागते संलग्न रहेगा तभी हिंदुस्तान का भला होगा। नहीं तो दूसरों के आसरे पर, दूसरों की भाषा भेष भोजन भाव का अवलम्बन करने से चाहे कोटि जन्म तक शिर पटका करें तो क्या होना है ? और यदि कुछ दैवयोग से हो भी गया तो क्या है ? ब्राह्मण का लड़का हुसेनी कहला कर जिया तो उसे जिया नहीं कहते । अतः यदि आप हिंदुस्तानी है और हिंदुस्तान का उद्धार किया चाहते हैं तो किसी के कहने सनने में न आ के अपने यहां की तुच्छ से तुच्छ वस्तु एवं व्यक्ति को सारे संसार के उत्तमोत्तम पदार्थों अथच पुरुषों से श्रेष्ठ समझिए और पूर्ण पौरुष के साथ दूसरों को भी यही समझाते रहिए तथा अपनों से अपनायत निभाने में किसी प्रकार का भय संकोच, लालच लजा जी में न आने दीजिए। यह प्रण कर लीजिए कि चाहे जैसी हानि हो, चाहे जो कष्ट हो कुछ चिंता नहीं। सर्वस्व जाता रहे, अभी मृत्यु हो जाय, मरने पर भी कठिन नकजातना अनंत काल तक सहनी पड़े पर अपने हिंद और अपनी हिंदी से 'हम यह दो बात कहके हारे हैं। तुम हमारे हैं !!' बस फिर प्रत्यक्ष देख लीजिएगा कि कितने शीघ्र अथच कैसी कुछ उन्नति बालों के भागे दिखाई देती है। पर बातें