पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३३४

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

३१२ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली सीम्रता, सरलता, तिर्यकता सब उसके विचरण करने के लिए समान हैं और उससे बड़ा वहां कोई प्राणी नहीं है। छोटे बड़े, दुःखी सुखी, भले बुरे सब उसकी दृष्टि में समान हैं तथा कोई उससे बड़ा क्या बराबर का भी नहीं है । अथच वेद अर्थात् आर्यों की परम प्राचीन सत्य विद्या को यदि कोई राक्षस लुप्त किया चाहे तो परमेश्वर के मारे वह पानी का डूबा भी नहीं बच सकता है। उसके आश्रितों को महाप्रलय में भी कोई खटका नहीं है। इसी प्रकार कच्छपावतार की लीला से यह निश्चित होता है कि जब देवता और राक्षस अर्थात् आर्य एवं अनार्य एकत्रित होकर संसार सागर का मंथन करके उसमें छिपे हुए रत्न प्रकट करने में कटिबद्ध होते हैं तो उनके उद्योग में सहारा देने के लिए भगवान की पीठ बड़ी मजबूत है। फिर उनके परिश्रम का फल उनके जाति के स्वभाव के आधीन है। जिसे अमृत रुचे वह अमृत ले, जिसे मदिरा भावे वह बोतलें लुढकावे । बराह रूप का वर्णन यह दर्शाता है कि हिरन्याक्ष अर्थात् सुवर्ण (धन ) ही पर दृष्टि रखने वाले राक्षस या यों कहिये स्वार्थाध लालची जब पृथिवी को पाताल में ले जाने का उद्योग करते हैं अर्थात् सारा संसार रसातल को चला जाय इसकी चिंता नहीं करते, केवल अपना घर भरने में तत्पर रहते हैं, उनके दूर्गकरणार्य परम देव सब प्रकार प्रस्तुत हैं, चाहे तुच्छ से तुच्छ और भयंकर से भयंकर रूप एवं स्वभाव धारण करना पड़े। नृसिंह स्वरूप का आख्यान यह दिखलाता है कि जो प्रेम प्रमत्त भगवत् भजन के आगे न अपने जातीय सम्प्रदाय को चिन्ता करते हैं न सगे बाप का संकोच रखते हैं, न मरने जलने से डरते हैं उनके उद्धराथं प्रेम देव सब प्रकार प्रस्तुत रहते हैं। प्रतिपक्षी चाहे जैसा समर्थी हो, चाहे जिसका बरदानी हो पर भगवान खंभा फाड़ के निकल आबैगे और उसे मार गिरावैगे। बामन बपुष का चरित्र इस बात का प्रकाशक है कि ईश्वर का स्वरूप देशकाल पात्रानुसार अत्यन्त छोटा भी है एवं अतिशय बड़ा भी है। तथा देवताओं अर्थात दिव्य गुण स्वभाव वालों के उपकारार्थ वे किसी बात में मंद नहीं है। यदि हम समातियों की भलाई के लिए भीख मांगें अथवा छल करें तो भी ईश्वर की दृष्टि में बुरे न ठहरेंगे बरंच उसके उदाहरण पर चलने वाले होगे। परशुराम जी का इतिहास इस आशय का प्रदर्शक है कि साहसी के लिए शस्त्र की आवश्यकता नही है । बड़ी से बड़ी सेना ने घुस जाने और सहस्त्रवाह ऐसे का सामना करने को छोटी सी कुल्हाड़ी बहुत है। पर इस अवतार की न कही विशेष रूप से पूजा होती है न इन दिनों इनके गुणों का कोई प्रयोजन है। धर्मानुरागियों को शांति से बढ़ के कोई शस्त्र आवश्यक नहीं। श्री रामचंद्र का तो कहना ही क्या है, उनके वृत्त में हम वह २ लोक परलोक बनाने वाले उपदेश पा सकते हैं जिनका वर्णन करने को बड़ा ग्रंथ चाहिए । पर हां बालि को छिपा के मारना और सीता जी का विठूर भेज देना उनके पक्ष में कोई २ लोग अनुचित समझते हैं । पर जब वह मन लगा के शरणागत की रक्षा और मित्र के उद्धार एवं प्रमा रंजन के कर्तव्य की महिमा का विचार करेंगे तो जान जायंगे कि भग- बान मर्यादा पुरुषोत्तम के यह दोनों काम राजधर्म एवं साधुनीति के विरुद्ध न थे । इसी