पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३१६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२९४ [ प्रतापनारायण-ग्रंथ.बली एकत्र हो जाता था पर नित्य का लक्षण यही था कि 'एकाकी निस्पृहः शांतः पाणिपात्रो दिगंबरः'। किन्तु एकांतवासी निश्चिन्त शांतिमय लोगों ने संसार के लिए लोक पर- लोक बनाने वाली वह अखंडनीय युक्तियां निश्चित कर दी हैं कि जिनकी अवज्ञा कभी किसो सहृदय की अंतरात्मा से हो ही नहीं सकती। वह सब बहुधा अकेले ही रहते थे और अनेकांश में अपने सहकालीन समुदाय की हां में हां न मिलाते थे। पर वास्तव में उन सबका उद्देश्य एक था। अर्थात् ईश्वर की महिमा का प्रचार एवं संसारियों के जीवन जन्म का सार्वदेशिक सुधार, बस । इसी से शास्त्र कह रहा है कि 'नैकोमुनियं- स्यवचः प्रमाणम्' अर्थात् एक मुनि नही है जिसका पाक्य प्रमाण के योग्य हो। भावार्थ पह कि सभी मुनि वृन्द के बचन प्रमाण हैं। इसी प्रकार ईसामसी मुहम्मद इत्यादि सभी मान्य पुरुषों ने आरंभ में अकेले ही अपने २ उद्देश्य की पूर्ति का अनुष्ठान कर उठाया था पर यावज्जीवन उसी में लगे रहने के कारण यहां तक साफल्य लाभ कर लिया था कि आज तक लाखों अंतःकरण साक्षी देते हैं और सदा देते ही रहने की अधिक संभावना है। इतने प्रमाण पा के हम क्यों न मान लें कि सच्चे जी से मजबूत कमर के बांध के यदि एक पुरुष भी खड़ा हो जाय तो अपना मनोर्थ अवश्य पूर्ण कर लेगा। यदि दैवयोग से सिद्धि में पूर्णता भी न हो तो भी इसमें कोई सन्देह ही नहीं है कि जिस मूल को वह आरोपित कर जायगा उसमें आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, अवश्य ही यथेच्छ फल फलेंगे। पर होना चाहिए सच्चा उद्योगी, जिसका मुख ही नही बरंच रोम २ दिन रात 'या तो काम पूरा करेंगे या यत्न हो करते २ मरेंगे' का मंत्र जपा करता हो। आज बरसों से हम सैकड़ों युवकों के मुंह भारत का उद्धार, देश की उन्नति, जाति का सुधार आदि शब्द सुन रहे हैं पर जब आंखें खोल के देखते हैं तो भारत का उद्धार कैसा, किसी भारतीय समुदाय का . भी उद्धार नहीं देखते । देश की उन्नति कैसी देशीय सभी व्यक्ति एवं वस्तु दिन २ अवनत होती जाती हैं। जात्रि का सुधार तो दूर रहा सुधार का गीत गाने वाले ही बहधा किसी न किमी बिगड़ेलपन में फंसे हुए हैं। इन लक्ष्यों को देख के ऐसा कौन है जो न कह उठे कि हिंदुस्तान का सच्चा हितैषी इनमें से एक भी नहीं है। जो अपने को इस नाम से पुकारते हैं उनका भोतरी तत्व देखिए तो कोई नाम के चाहने वाले निकलेंगे, कोई दाम के आकांक्षी मिलेंगे। सच्चा उद्योगी यदि एक भी होता तो बहुत कुछ दिखाता। हां, आरंभ में राजा राममोहन राय, मुंशी कन्हैयालाल, अलखधारी बाबू हरिश्चन्द्र भारतेंदु, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि थोड़े से पुरुषरत्न थे जिन्होंने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये निष्कपट भाव से जीवन बिता दिया, किसी दुःख किसी द्वेषी की कुछ भी भटक न की पर यतः उनके समय में चारों ओर पूर्ण अंधकार था इससे उनकी आयु केवल दोप-प्रज्वालन और सुपंथ-प्रदर्शन ही में व्यतीत हो गई। अब हमारे लिये उन्नति को राहें उनकी दया से खुली हुई हैं। पर यदि हममें से थोड़े लोग भी सच्ची उमंग के साथ उन मार्गों का अवलंबन न करेंगे तो चाहे लाख बकै उन्नति धाम में कभी न पहुंचेगे। और उपर्युक्त महापुरुषों का वास्तविक तत्व समझ कर सच्चाई के साथ निर्द्वन्द भाव मे यदि एक भी