पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/३०२

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ग्रामों के साथ हमारा कर्तव्य इधर पंद्रह बीस वर्ष से भारतवर्ष में देश की दशा के सुधार की धूम मच रही है। "धर्म संबंधिनी, समाज संशोधिनी, राजनीति विषयिणी छोटी बड़ी एकजातीय तथा बहु- जातीय सभाओं, उपवेशकों और समाचारपत्रों का प्रादुर्भाव इसी उद्देश्य से हुआ है और इन यत्नों से यद्यपि अभी बहुत ही थोड़ी सफलता प्राप्त हुई है अथच जैसी चाहिए वैसी सफलता के लक्षण अभी दूर दिखलाई पड़ते हैं, पर इसमें सन्देह नहीं है कि एक न एक दिन कुछ न कुछ होगा। जब जहां के लोगों की चित्तवृत्ति पुराने ढर्रे से फिर से किसी नवीन अथवा पथ की ओर झुकना आरंभ करती है तब कुछ दिन में वहां या तो पूर्ण उन्नति अथवा नितांत अवनति अवश्यमेव मुख दिखलाती है। इस न्याय को -सामने रख कर बिचारने बैठिए तो आशा देवी यही कहती है कि जो देश के सैकड़ों वर्ष से अवनत हो रहा है वह उन्नत न होगा तो क्या होगा। यह प्राकृतिक नियम है कि एक दशा का अपनी पराकाष्ठा को पहुँच जाना ही दूसरी ( उसके विरुद्ध ) दशा के प्रारंभ का लक्षण है। इसके अनुसार अब हमें उन्नति ही की आशा करनी चाहिए एवं बहु सम्मति के अनुसार सभा इत्यादि का संस्थापन भावो उन्नति ही के साधन हैं। पर इन साधनों का प्रभाव विचार कर देखिए तो अभी वे बल बड़े २ नगरों ही में सीसा- बद्ध हो रहा है। ग्रामों में यदि कुछ पहुँच भी है तो इतना जितने को न पहुंचना रहें तो अयुक्त न होगा। बंगाल, बंबई, मद्रासादि सुविज्ञ प्रान्तों के ग्रामों की ठीक २ दशा हम नहीं जानते क्या है, कदाचित् उनमें नगरवासियों की भांति ग्रामस्थ जन भी अपने • स्वत्व और कर्तव्य को जानते हों। पर हमारा पश्चिमोत्तर प्रदेश और अवध, जो सभी बातों में सबसे नीचे पड़ा है, जहां नगरों में भी लाख हाय २ करो पर कृतकायंता के समय ढाख के तीन ही पात देख पड़ते हैं, वहां ग्रामों की दशा ऐसी शोचनीय हो रही है कि यदि हमारे देशभक्तगण शीघ्र उनकी ओर दृष्टिपात न करेंगे तो शहरों का सब करना धरना इसी कहावत का उदाहरण हो जायगा कि रात भर पीसा और चलनी में उठाया । क्योंकि जिस देश को आप सुधारना चाहते हैं वह थोड़े से बड़े २ नगरों ही में विभक्त नहीं है वरंच एक २ नगर के आस पास अनेक छोटे बड़े गांव ऐसे विद्यमान हैं जिनकी लोकसंख्या मगर के जन समुदाय से कहीं अधिक है । किसी प्राचीन से प्राचीन नगर के लोगों का पता लगाइए तो ऐसे कुटुम्ब बहुत थोड़े पाइएगा जिनके पूर्व पुरुष सदा से वही के रहने वाले हों। बहुत से लोग वही हैं जिनके पिता अथवा पितामह वा उनसे दो ही एक पीढ़ो पहिले के लोग किसी गांव में रहा करते थे और वर्तमान पीढ़ी का आज भी उस ग्राम अथवा उसके निकटस्थ किसी स्थान से सम्बन्ध बना हुआ है। जब बहुलोक पूर्ण नगरों का यह हाल है तो हमारे इस कहने में क्या संदेह कीजिएगा