पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२९७

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श्री भारत धर्म महामंडल] २७५ दिनों समस्त विदेशी हिंदुस्तान का यश गाते थे, प्रतिष्ठा करते थे और हिंदुस्तान के लिए ललचाते थे तथा हिंदुस्तान के कोप से डरते थे। जब हिंदुओं के कुदिन आये तब हिंदुस्तान दूसरों के स्वेच्छाचार का आधार बन गया। बड़े २ शाहंशाहों के होते हुए भी भारत की दशा को कोई इतिहासवेत्ता अच्छी न कह सकता था। यों ही आजकल जबकि न महाराज पृथ्वीराज के पुरखों के समय की नाई हिंदुओं को सब सुख सुविधा प्राप्त है न अलाउद्दीन औरंगजेब आदि के समय की भांति राह चलना अथवा चार मित्रों के साथ बैठना कठिन है बरंच महारानी विक्टोरिया के प्रबल प्रताप से दुर्दशा का रोग निःशेषप्राय हो गया है और धीरे २ बल बढ़ता जाता है तथा स्वच्छंद रूप से सबको अपनी दशा सुधारने का अधिकार है तब हिंदुओं के साथ २ हिंद के दिन फिरने की आशा करना भी अमूलक नहीं जान पड़ता। पर यतः अपना भला बुरा अनेकांश में अपने हो करने से होता है। अस्मात् सब जातियों के साथ २ हिंदुओं को भी उचित है कि इस सुराज्य के अवसर को हाथ से न जाने दें एवं सब बातों में राजा ही का मुखावलोकन न करते रहें, अपने सुधार के निमित्त कुछ आप भी हाथ पांव हिलावें और सकड़ों एप, सहस्रों शाक्षियों से यह भी सिम हो चुका है कि इस जाति का शारीरिक, आत्मिक,सामाजिक, राजनैतिक,व्यावहारिक, लौकिक, पारलौकिक सब सुधार सदा सर्वथा धर्म ही के मूल पर स्थित है। इससे धर्म से संबंध रखने वाली सभाओं का समय २ पर होते रहना इसके कल्याण साधन का एक बड़ा भारी अंग है और इसी विवार से बहुत से बुद्धिमानों ने बहुत स्थानों पर आर्यसमाज, ब्रह्मसमाज, धर्मसमादि कई एक सभा संथापित भी की। पर एक तो जो काम पहिले पहिल किया जाता है वह पूरी रीति से कम पूरा पड़ता है, दूसरे जिसमें एक बड़ा जनसमूह योग नहीं देता उसके उन्नति में बाधा अवश्य पड़ती है। इन दो कारणों से यह समाज जैसा चाहिए वैसी कृतकार्य न हो सकी। इनका उद्देश्य यद्यपि अनेकांश में उत्तम है पर धर्म प्रचार के साथ ही मत मतांतर का खंडन मंडन, प्रतिमा पुराणादि को हठपूर्वक निंदा स्तुति और जाति भेद, भक्ष्याभक्ष्य विधवा विवाहादि विषयक आग्रह निग्रह के कारण देश को साधारण जनता इन पर यथोचित श्रद्धा न कर सकी। यद्यपि इधर दो चार वर्ष से इनमें के कुछ लोग इस बात पर ध्यान देने लगे हैं कि लोगों की रुचि और देशकाल पात्र के अनुसार कार्यवाही किए बिना काम न चलेगा, पर इसका पूरा बर्ताव होने में अभी विलंब है। इससे यह कहना अयुक्त न होगा कि इनके उद्देश्य की सफलता में भी विलंब है। इस कारण ऐसी महासभा की अवश्यमेव बड़ी आवश्यकता थी जो किसी नियत समय पर अनेक नगरों के अनेक मतानुयायी लोगों को एकत्रित किया करे और उन सबको सम्मति के अनुसार सर्व धर्म पंथानुमोदित सर्व समुदाय सम्मत एवं सर्व- लोक रुचिकारक विचार तथा समय २ पर स्थान २ में अपने सहचर वर्ग के द्वारा उनके प्रचार का प्रबंध करती रहे। धर्म के भावुक और देश के भक्तों को आनंद मनाना चाहिए कि इसी अभाव की पूर्ति के लिए श्री भारत धर्ममंडल ने आविर्भाव किया है ViraDNANGIRATRAPATRANARTHAHMINACTSHIMLIANRAINEKHABAR