पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२८२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२६० [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली गिरे भी तो ऊपर ही अटका रहे, बच्चों को न दबा सके । भला जिस देश में करोड़ों लोग रूखी रोटी को तरसते रहते हैं, करोड़ों कृषि, वाणिज्य, शिल्प, सेवादि के द्वारा जो कुछ कमाते हैं उसका सार भाग टिक्कस, व्यापार, चंदा आदि की राह बिलाय चला जाता है, जहाँ दुःखी लोगों को दुहाई देने के लिए भी रुपया लगाना पड़ता सो भी न्याय ऐसा कस्तूरी के भाव बिकता है कि बहुधा हाये वाले ही पाते हैं, वहाँ सबको पेट पालने और येनकेन विधिना निर्वाह करने की चिता चाहिए कि सत्यासत्य की? हमें सत्य का आग्रह करना खरगोश के सींग अथवा खपुष्प नहीं है तो है क्या? न मानिए तो किसी सच्चे दुष्ट का सच्चा हाल कह देखिए, परमेश्वर चाहे तो कल्ह ही मानहानि के अपराध में लेने के देने पड़ जायंगे । इसी से कहते हैं कि अपना काम चलाए जाना चाहिए। पुराने लोगों की भांति सत्य असत्य के उलझाओं में पड़ना बाहियात है। तथा जो कोई कहे कि मैं झूठ से दूर भागता हूँ उसे जान लेना चाहिए कि महा झूठा है। "मैं झूठ नहीं बोलता" इस वाक्य का अर्थ ही यह है कि मैं झूठ कह रहा हूँ। नहीं तो ऐसा कौन है जो सत्य बोल के सुखपूर्वक निर्वाह कर सकता हो। हाँ, सचमुच सत्य के घमंड में आप संसार को तृणावत समझै रहिए, मरने पर बैकुंठ में सबसे ऊंची पदवी पाने का विश्वास किए रहिए, पर जब तक दुनिया में रहिएगा तब तक थोड़े से ( यदि हों) सतयुगी लोगों को छोड़ के सबकी भांखों में खटकते ही रहिएगा, क्योंकि सत्य होती है कड़वी । इसी से 'खरी कहैया दाढ़ीजार" कहलाता है। उसे कोई पसंद नहीं करता। 'खरी बात सअदुल्ला कहैं, सबके जी से उतरे रहैं'। जिसको कहोगे उसे मिरचे सी लगेंगी और जहां तक चलेगी तुम्हें नीचा दिखा के अपने जी के 'फफोले फोड़ने का यत्न करेगा, चाहे असत्य अन्याय और अनर्थ के ही द्वारा क्यों न हो। फिर भला जिस में पराई आत्मा कष्ट पावे तथा अपने ऊपर आंच आवे एवं दोनों मे बैमनस्य बढ़े वह काम किस काम का ? इससे यहीं न उत्तम है कि खुशामद के द्वारा दूसरों को ग्नुश रखना और अपने लिए आमद का द्वार खुला रखना ! सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र ने सत्य का बड़ा पालन किया था, उन्हीने क्या भुना लिया था ? राज्य गया, घर छूटा, स्त्री बिकी, पुत्र बिछड़ा, आप सारी सलतनत छोड़ के श्मशान में बरसों चौकीदारी करते रहे। इसके बदले मे मिला क्या ? कीति! जो न खाने के काम की, न पहिनने के काम को । और इसके विरुद्ध झुठों के सौभा- ग्योदय का एक नहीं सहन उदाहरण बतला क्या कहिए दिखला दें। पर हमें सत्यानाशी सत्य का हठ करके नाहक के झंझट में पड़ना मंजूर नहीं है इस से आप ही देख लीजिए और मन ही मन में समझे रहिए कि हमारी पारी पिथ्या देवी की आराधना कर के किस २ ने कैसे २ पद प्राप्त कर लिए हैं, कैसा कुछ धन, कैसी कुछ प्रतिष्ठा, कैसे २ सामर्थ्यवानों की दया दृष्टि, लाभ की है तब आँखें खुल जायंगी कि असत्य में क्या मजा है और सन्य में क्या फल है। यह न कहिएगा कि झूठे खुशामदियों को दुनिया क्या कहती है। जब हमें नौकरी अथवा ठेकेदारी के द्वारा सहस्त्रों का धन मिल जायगा बड़े बड़ों में आवाजाही हो जायगी, हम राजा, नम्बाब, सर, हजरत कहलायेगे, समय