पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२७९

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पंचायत ] सर्वसम्मति के द्वारा कोई ऐसी युक्ति निकाल देते थे जिसमें सबको सब प्रकार की सुविधा प्राप्त हो जाती थी पर कलियुग में जबकि हमारा सुख सूर्य पश्चिम की ओर झुकने लगा तब बुद्धिमानों ने यह रीति निकाली कि ब्राह्मण यद्यपि सबके अग्रगामी और क्षत्रिय संसारिक स्वामी हैं पर समस्त जाति एवं कुटुम्बों में बहुत सी रीति नीति ऐसी है जो एक दूसरे की चाल ढाल से कुछ न कुछ भिन्नता रखती हैं, और सब को सब के यहां की सब बातों का पूर्ण होना दुस्साध्य है, इससे प्रत्येक जाति की पृथक २ पंचायत नियत हो जाय तो बड़ा सुपीता रहेगा। सच पूछो तो यह युक्ति और भी उत्तम थी और जिन समूहों में इसका जितना आदर बना हुआ है वह अद्यापि अनेक प्रकार की अड़चनों से बचे रहते हैं। हमारे पाठकों ने नाई, बारी, तेली, तमोली, आदि साधारण श्रेणी के लोगों की पंचायत कभी देखी होगी तो जानते होगे ( न देखी होगी तो देख के जान सकते हैं कि किसी से कोई ऊंच नीच हो गई बस पांच पंच ने इकट्ठा होके कोई जाति संबंधी प्रायश्चित नियत कर दिया जिसके करने वाले को सामर्थ्य से बाहर कष्ट नहीं होता और अपराधी प्रसन्नतापूर्वक हंस २ के अंगीकार कर लेता है नथा उसके जाति भाई आनन्द सहित मे ऋण कर देते हैं एवं आगे के लिए दूसरे लोग मावधान हो जाते हैं जिससे पुनर्बार वैसे दुःख दुर्गुणादि उपस्थित होने की संभावना विशेषतः नहीं रहती। यह लोग यद्यपि बहुधा विद्वान् नहीं होते पर पंचायत के द्वारा अपने समुदाय का प्रबंध ऐसी उत्तमता से कर लेते हैं कि धन मान एवं धर्म भी सहज में रक्षित रहते हैं बरंच कभी २ राजकर्मचारी अथच उच्च जाति वाले अधिकारियो को भी अपने विरुद्ध हाथ पांव हिलाने में अक्षम कर देते हैं। पर ब्राह्मण क्षत्रियादि उच्च कुल वालों में यह ल्या न होने के कारण खेद है कि विद्या बुद्धि और प्रतिष्ठा के आछत कोई भी ऐमा प्रबंध नहीं है जो शिर पर आई हुई आपनि एवं असुविधा को रोक सके। जिसके जी में जो आता है वह कर उठाता है । कोई पूछने वाला ही नहीं। छिप २ के बड़े से बड़े अधर्म अन्याय अनर्थ करने वालों के लिए कोई रोक टोक ही नहीं। कही किसी को गुप्त चरित्र प्रगट हो गया ( सत्य हो वा मिथ्या) तो फिर किसी भांति मरण पर्यन्त उसके दुष्फल से मुक्ति ही नहीं। भाई २, बाप बेटे तक में झगड़ा खड़ा हो जाय अथवा किसी पर कोई देवी मानुषो दुर्घटना आ पड़े तो कचहरी के बिना कहीं शरण ही नहीं। किसी को भी आपस के चार जनों से कोई आश्रा ही नहीं, किसी का त्रास ही नहीं, फिर भला निरंकुशता दृढ़ स्थायिनी हो के न चिमटे तो क्या हो । धन, धर्म, मान, प्रतिष्टा, शक्ति, सदाचारादि का दिन २ ह्रास न हो तो क्या हो। बहुत आगे की कथा जाने दीजिए, केवल दो तीन पीढ़ी आगे से वर्तमान कुटुम्बो की दशा का मिलान कीजिए तो, परमेश्वर झूठ न बुलावे, सौ पीछे कम से कम पचास साठ घर ऐसे निकलेंगे जिनके बाबा लक्षा- धीश थे पर पोतों को पेट भर अन्न कठिनता से मिलता है। पिता बड़े बड़े पंडितों का मुंह बंद कर देते थे पर पुत्रों को का खा गा घा में भी खलल है । प्रपितामह गांव भर के झगड़े निपटाते थे पर प्रपौत्र अपने कुटुम्ब को भी प्रसन्न रक्खेंगे तो नाक कट जाय । १७