पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२६९

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अब बातों का काम नहीं है ] २४७ और वहां अपना बैठा ही कौन है ? हिन्दू और हिन्दूपन का जिसे कुछ मोह हो उसी से इस विषय की आशा कर सक्ते हैं। उसीको इसके लिये उत्तेजना दे सक्ते हैं और कुछ सिद्धि न हो तो उसीसे शिकायत कर सक्ते हैं। सो वहां एक भी नहीं। अकेले पडित आदित्यराम हैं सो उनकी कोई सुनता नही । बस चलो छुट्टी हुई। हां, जिन्हे अपने प्यारे बालको की भलाई बुराई की ओर ध्यान तया निजत्व का ज्ञान हो उन्हे चाहिये कि उक्त विद्यालय की मंत्री सभा के भरोसे पर न भूलें, अपने हिनाहित को आप बिचारें और शीघ्र वहां हिन्दी के पुनरस्थापन का प्रयत्न करें। इस विषय मे प्रयाग हिंद समाज चाहती है कि समस्त आर्य सभा, धर्म सभा तथा अन्यान्य सभायें एवं देश के शुभचिन्तक गण अपने २ नगर मे इसका आन्दोलन करें और गवर्नमेट को प्रार्थना पत्र भेजे अथवा किसी स्थान पर नगर नगरोत्तर के प्रतिनिधि एकत्रित होके वृहत् सभा के द्वारा राजा और प्रजा से विनती करें और भली भांति समझ वें किन्दिी के बिना हिन्दुओ के सर्व- नाश की संभावना है । पर हम कहते हैं, अब बातो का काम नही है । अब घर मे आग लगे तब बहुत सोच विचार करना ठीक नही। शीघ्र पानी लेके दौड़ना ही श्रेयस्कर है । समा वा मेमोरियल जो कुछ करना हो शोघ्र कीजिये, शीघ्र हिन्दू समाज के मंत्री मशी काशीप्रसाद को अपनी २ सम्मति दीजिए और संमति ही नहीं तन मन से माय दीजिए । तथा यह भी समझे रहिये कि गवर्नमेट के वल मेमोरियल से न पसीजेगी। कर हरियो मे हिन्दी जारी कराने के लिए, केबी क्लासो मे हिन्दी पढ़ाने के लिए, हिन्दी मे मिडिल पास करने वालो को सरकारी नौकरी से वंचित न रखने के लिये मेमोरियल भेज के तथा बडे २ प्रमाण दे के देव लिया गया है कि सरकार कुछ ध्यान नहीं देती, जान बूझ के भी न जाने क्यो हिन्दू प्रजा का दुग्व सुग्ख नहीं सुनती, इससे दृढ प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिये कि जब तक कार्यसिद्धि न होगी तब तक कभी चुप न होगे । एक बार मुनवाई न होगी तो सौ बार, सहस्र बार निवेदन करेगे। प्रार्थनापत्रो के मारे इस खड के चीफ तथा प्राइवेट सेक्रेटरी महाशयो के महल भर देंगे । द्वार पर प्रार्थको की भीड़ तथा मेमोरियलो का ढेर इतना लगाये रहेगे कि निकलने पैठने को राह न रहे । इधर नगर २ गाव २ मे रोवैगे, भीख मागेंगे और अपनी मातृ भाषा की धूम मचाये रहेगे । हिन्दूमात्र को समझावैगे कि लडके पास हो चाहे न हो पर हिन्दी अवश्य पढाओ । तभी कुछ होगा। तभी एक बड़ा समुदाय एवं गवर्नमेट स्वयं हमारी सहायक हो के मनोरथ पूर्ण करेगी। पर जिन्हे हिन्दी की कुछ भी कलक हो उन्हे-'काल्हि करते आज कर, आज करते अब्ब' और-'प्रारभ्य चोत्तम जना न परित्यजति'-इन दो बचनो को गाठ बांध के, मजबूती से सेतुआ कमर बांध के पीछे पड़ माना चाहिये। क्योकि अब तो बातो का काम नहीं है, काम में जुट जाने का काम है। हो सके तो हिन्दी की रक्षा के लिए उद्यत हो जाइए नही तो हिन्दपन का नाम लीजिए । आखिर एक दिन मिटना है, आज ही सही। खं० ६, सं• १० (१५ मई १० सं० ६)