पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२५८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२३६] [ प्रगापनारायण-ग्रंथावली का सत्यानाश, सभी कुछ हो सक्ता है, पर मतवादी लोगों की बुद्धि में न जाने कहाँ से पत्थर पड़े हैं कि जिन बातों से न अपने लाभ की संभावना है न पराये हित की आशा है उन्ही को सोच २ निकाला करते हैं और देश के भाग में लगी हुई आग पर घी डाला करते हैं । नहीं तो ऐसी किस सभ्य देश की भाषा है जिसमें ऐसे वाक्य न होते हो जिनके शब्दों का अर्थ और है पर उस वाक्य का तात्पर्य और है । ( ऐसे सैकड़ों उदाहरण पाठकगण आप सोच सकते हैं इससे लिखना आवश्यक नहीं समझा ) पर जिन्हें दूसरो के मान्य पुरुषों को गालियां देने और पलटे में अपने बड़े बूढ़ो को गालियां दिलवाने ही में धर्म सूझता है उन्हें समझावे कोन ? हमारी समझ में यदि ऐसे लोगों को, जो सभावों में बैठ के तथा मेलो और बाजारों में खड़े हो के किसी के मत पर आक्षेप करते हैं, सर्कार की ओर से दं: नियत हो जाय तो अति उत्तम हो । पर यतः यह काम उन्हीं लोगों का है जो सचमुच देश के सामाजिक एवं राजनैतिक सुधार के लिये बुद्धिपरिकर हैं। इससे हम इन्हें इस बात का स्मरण दिलाने के अतिरिक्त विशेष बातों पर जोर दें तो हमारे प्रस्तुत विषय में विक्षेप पड़ेगा। अतः कुकियों को केवल कविता पढ़ने और संस्कृत के मुहाविरे सीखने को पुनः अनुमति दे के तथा इतना समझा के कि यदि मान ही लिया जाय कि सचमुच इंद्र के सहस्त्र नेत्र हैं और तुम्हारे कथना- नुमार उनकी आंखें उठती होगी तो क्या करते होंगे, कोचड़के मारे सारी देह भिनकने लगती होगी, तो भी जब तुम्हें ( मतवादी जी को ) न उनकी आँ वे धोनी पड़ती हैं न अंजन पीसने का कष्ट सहना पड़ता है न डाक्टर की फीस देनी पड़ती है, फिर मुग्व क्यों गंदा करते हो ? अपनी वृद्धि भ्रष्ट एवं पराई आत्मिक शांति नष्ट करने का वृथा उद्योग क्यो करते हो ? अब अपने मुख्य विषय पर आते हैं जिससे बुद्धिमानों को पुराण कर्नाओं की बुद्धिमता का परिचय और तद्वारा अपने सुधार का कुछ आश्रय प्राप्त हो। १. देवताओं अर्थात् निराकार के पौराणिक रीति से साकार कल्पमामय स्वरूपों के बहुधा चार अथवा आठ भुजा होती है। यह उनकी महासामर्थ का द्योतन है । हिंदी में महाबिरा है कि जब कोई बड़ा काम शीघ्रता के साथ पूर्ण रूप से कोई नहीं कर सक्ता तो अपने उपासकों से बहुधा कहता है कि भाई, अपनी सामर्थ्य भर कर तो रहे हैं, कुछ हमारे चार हाथ तो हई नहीं कि एकबारगी कर डालें। हमें उन लोगों पर आश्चर्य आता है जो आप तो दिन भर चार हाथ२ कहते सुनते रहते हैं पर प्रात्रीन विद्वानों को लेखनी से चार हाय ( चतुर्भुज ) लिखा हुआ देख सुन के आक्षेप करने दौड़ते हैं । यदि कुछ भी बुद्धि हो तो स्वयं समझ सकते हैं कि चार अथवा आठ हाथ वाले का अर्थ महासामर्थ्यवान है। इसमें तर्क वितर्क का क्या प्रोजन ? इससे हमें यह उपदेश भी प्राप्त होता है कि यदि हम दो अथवा चार मनुष्य मिल के अर्थात् चार वा आठ हाय एकत्रित करके किसी काम को आरंभ करें तो अकेले की अपेक्षा अधिक सहम और सुंदर रीति से कर सकते हैं, जैसा कि कविवर ठाकुर का वचन है 'चारि