वृद्ध ] २३१ भाता हो, तो अनेक काम हैं जिनमें से एक २ में अनेक २ लोग हुए हैं । आप भी किसी में जुट जाइए, पर इतना स्मरण रखिएगा कि जिस काम में काल की गति परखने वाले लगे हों, उसी में लगने से सुभीता रहेगा, विरुद्ध कार्यवाही में अनेक विघ्नों का भय है। यदि उन्हें झेल भी जाइये तो भी अपने जीते जी तो पहाड़ खोद के चूटा ही निकालियेगा, पीछे से चाहे जो हो, उसमें आपका इजारा नहीं। वह काल भगवान को इच्छा पर निर्भर है। इसी से अगले लोग कह गए हैं कि काल का स्मरण सब काल करते रहना चाहिये । यदि यह वाक्य नीरस जान पड़े तो गोस्वामी जो का यह परम रसोला बबन कण्ठ रखिये-'लव निमेष परमान युग, वर्ष कल्प शर चंड । भजसि न मन तेहि राम कह, काल जामु कोदंड ।।' इसके द्वारा लोक परलोक दोनों मुघर सकेगे और काम को अमूल्यता आपसे आप समझ में आती रहेगी, जिसका मम्झना मुख्य धर्म है। खं. ६, सं० ७ ( १५ फरवरी ह. सं० ६) वृद्ध इन महापुरुष का वर्णन करना सहज काम नहीं है। यद्यपि अब इनके किसी अंग में कोई सामर्थ्य नहीं रही अतः इनसे किसी प्रकार की ऊपरी सहायता मिलना संभव सा है, पर हमें उचित है कि इनसे डरें, इनका सन्मान करें और इनके थोड़े से बचे खुचे जीवन को गनीमत जानें। क्योंकि इन्होंने अपने बाल्यकाल में विद्या के नाते चाहे काला अक्षर भी न सीखा हो, युवावस्था मे चाहे एक पैसा भी न कमाया हो, कभी किसी का कोई काम इनसे न निकला हो तथापि संसार की ऊन नीच का इन्हें हमारी अपेक्षा बहुत अधिक अनुभव है। इसी से शास्त्र की आज्ञा है कि वयोविक शूद्र भी द्विजाति के लिये माननीय है । यदि हम में वुद्धि हो तो इन से पुस्तकों का काम ले सक्ते हैं । बरंच पुस्तक पढ़ने में आंग्वों को तथा मुख को कष्ट होता है, न समझ पड़ने पर दूसरों के पास दौड़ना अपनी बुद्धि को दौड़ना पड़ता है, पर इनसे केवल इतना कह देना बहुत है कि हां बाबा फिर क्या हुआ ? हां बाबा ऐसा हो तो कैसा हो ? बाबा साहब यह बात कैसी है ? बस बाबा साहब अपने जीवन और का आंतरिक कोष खोल कर रख देंगे। इसके अतिरिक्त इनसे डरना इसलिये उचित है कि हम क्या हमारे पूज्य पिता चाचा ताऊ भी इनके आगे के छोकड़े थे । यदि यह बिगड़ें तो किस की कलई नहीं खोल सको ? किस के नाम पर गट्टा सी नहीं सुना सक्ते ? इन्हें संकोच किस का है ? बक्की के सिवा इन्हें कोई कलंक ही क्या लगा सक्ता है ? जब यह आप ही चिता पर एक पांव रखे बैठे हैं, कब्र में पांव लटकाये हुए हैं तो
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