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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२२६ नारायण-ग्रंथावली करें। तब कुछ हो सकेगा। नोचेत् जो बात कांग्रेस ने पांच वर्ष में प्राप्त कर ली है वह कांफरेन्स को पचास वर्ष में भी दुर्लभ रहेगी। स्मरण रहे कि समाज को जितना संबंध ब्राह्मणों तथा मौलवियों से है उतना गवर्नमेंट से कदापि नहीं है। गवर्नमेंट यदि कुछ लोगों को या धन को एकत्र किया चाहै तो बीस उलझाव पड़ेंगे, वीस वाद बिवाद उठेंगे, तब कहीं जबरदस्त का ठेंगा शिर पर समझ के लोग सहमत होगे। पर यदि हमारे पंडित महाराज आज्ञा कर दें कि अमुक दिन अमुक पर्व है, उसमें अमुक स्थल पर स्नान दानादि का महात्म होगा, फिर देख लीजिये ठीक समय पर उसी ठौर कितनी प्रसन्नता से कितने लोग तथा कितना कुछ इक्ट्ठा हो जाता है। यह प्रत्यक्ष महिमा देख कर भी जो लोग विप्र बंश का आश्रय न लेकर अन्यान्य रीतियों से समाज के सुगर का यत्न करते हैं वह भूलते नहीं तो करते क्या हैं ? इस विषय में जितनी शीघ्रता और सुंदरता के साथ ब्राह्मणों के द्वारा कार्य सिद्धि होगी उतनी गवर्नमेट एवं तत्स्थापित कानून द्वारा कभी न हो सकेगी। यों बात २ में पराधीनता का प्रेम फसफसाता हो तो और बात है। इसके निमित्त यदि आदरणीय पंडित अयोध्यानाथ जी, मान्यवर पंडित मदनमोहन मालवीय महोदय, श्रीमान पं. दीनदयालु तथा भारतधर्म महामंडल एवं विप्र वंश महोन्सव के अन्यान्य उत्साही सद्व्यक्ति कटिबद्ध होगे और तन मन धन से उद्योग करेंगे तभी कुछ हो सकेगा, नहीं तो कांफरेन्स में सदा खिलवाड़ ही होता रहेगा। हम इन सजनों से अनुरोधपूर्वक विनय करते हैं कि शीघ्र इस ओर दत्तचित हों। इसमें कांग्रेस का भी बहुत भारी उपकार संभावित है । हमे पूर्ण आशा और महान अभिलाषा है कि उपर्युक महानुभावों के प्रसाद से आगामी वर्ष में कांफरेन्स को भी सर्वगुणसंपन्ना देखेंगे। खं० ६, सं० ६ (१५ जनवरी, ह० सं० ६) तिल (चलती फिरती बोली में ) हमार जजमान मनमां कहत ह हैं कि आजु काल्हि माह का महीना माय, बाह्मन देउता तिलवन का डौलु डार रहे हैं। हम इन दुइ अच्छरन मां औरुइ कुछ घखावा चाहित है । याक दांय हपरे पराग वाले पुरिखें ('हिंदीप्रदीप' संपादक ) कहा ता कि लकार ककहरा भरे का अमितु आय, और हमरे राम लिखा तेइन कि तकार तेही के बहिनी आय । फिरि भला जेहमा ल औ त दूनी होय तेंहका ऐसे वैसे समझबु कहाँ के भलमंसी आय हो ? पर मथुरा कति की बोली मां लत के कथा लिखी गती, आसी तिलन का महातमु न लिखतेन तो कैसे बनत, यह मा तो वोई अच्छर हैं । बाह रे तिल,