पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२४६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

२२४ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली दिया । अबकी बार रुपये के अभाव से बहुतेरे द्वेषी दांत बाते थे और हितैषी.भी चिंता में थे कि चालीस सहस्र मुद्रा प्रति वर्ष व्यय के लिये न मिलेगी तो काम चलना कठिन है। पर बम्बई में आध घन्टे के बीच तिरसठ हजार रु० इकट्ठे हो गये। इससे प्रत्यक्ष हो गया कि कांग्रेस 'सर्वेषामपिदेवानान्तेजोराशिसमुद्भवाम्' दुर्गा ही नहीं बरंच क्षण भर में सारे दुःख दरिद्र हरनेहारी लक्ष्मी भी है। इन लक्षणो से विश्वास होता है कि एक दिन इसके समस्त उद्देश्य सफल होके राजा प्रजा दोनों का वास्तविक हितसाधन करेंगे और इसके कारण महात्मा ब्रडला एवं ह म बाबा की सत्कीति भारत और इंगलैंड में सूर्य चन्द्रमा की स्थिति तक कृतज्ञता के साथ गाई जायगी । पर समाज संशो- धनी महासमा, (जो गत दो वर्ष से कांग्रेस ही के मंडप के नीचे अंतिम दिन एकत्रित होती है) जो इसकी सगी बहिन है, अभी निरी भोली है। यद्यपि इसके संचालक भो वही लोग हैं जो जाति सभा के शक्तिदाता हैं पर यतः समाज का सुधाग्ना राजकाज के संशोधन से भिन्न विषय है और सब बातों को पूर्ण योग्यता प्रत्येक पुरुष में नहीं होती। अतः सोश्यल कान्फरेन्स की कृतकार्यता के लिये वर्तमान प्रणाली हमारी समझ में ठीक नहीं है और इसी कारण इसके लिये दूसरे मार्ग का अवलम्बन अत्यावश्यक है । समाज में किसी नवीन बात का प्रचार करना उन सजनों को अधिक सुखसाध्य होता है जिनके चरित्र समाज की रीति नीति से विरुद्ध न हों तस्मात जो लोग विलायत हो आए हैं अथवा यही रह के खान पानादि मे बिलायत वालों का अनुकरण करते हैं व सामाजिक धर्म छोड़ के विदेशो धर्म ग्रहण कर लिया है वे अपनी विद्या बुद्धि एवं लोकहितैषी के लिये चाहे जैसे समझे जायं पर समाज की दृष्टि में आदर नहीं पा सक्ते अथच उनके बडे २ विचार पढ़े लिखे लोगों के चित्त को चाहें जैसे ज, पर समाज में प्रचलित होना निरा असम्भव चाहे न हो किन्तु महा कठिन अवश्य है । इसके अतिरिक्त यह भी बहुत ही सत्य है कि जिन बातों की ओर जिस प्रतिष्ठा के लोग चलाया चाहें सुख से नही चल सक्ती । इन उपयुक्त बातों पर पूरा ध्यान दिये बिना कान्फरेन्स कभी फलवती न होगी। यह यद्यपि कांग्रेस की बहिन है और प्रभाव भी उसी का सा रखती है पर स्वभाव इसका अन्य प्रकार का है। यह कांग्रेस की भांति हिन्दू मुसलमान क्रिस्तानादि सब धर्म के लोगों का एक होना नहीं चाहती । इसे केवल इतना ही अभीष्ट है कि हिन्दू हिन्दुओं की रीति नीति सुधारें, मुसलमान मुसलमानों की चाल ढाल ठीक करें। इनके कामों में वे हस्तक्षेप करें न उनकी बातों में ये बोलें। क्रिस्तानो के विषय में हमें कुछ वक्तव्य नहीं है क्योंकि उनके यहां इंगलैंडोय जाति का सा बर्ताव है जिसमें बाल्पविवा- हादि कुरीतियां हई नहीं। फारसियों के सामाजिक व्यवहार का हमें पूरा ज्ञान नहीं है इससे कुछ कह नहीं सक्ते । रहे हमारे हिन्दू मुसलमान भाई, उनके विषय में हम प्रण पूर्वक कहते हैं कि अपनी ही जाति के उन लोगों के विचाराम का आदर न करेंगे जो भोजनाच्छादनादि में प्रथकता रखते हैं फिर भला दूसरों की तो क्यों मानने लगे। अब की बार कान्फरेन्स की कार्य प्रणाली से अधिकतर लोग प्रसन्न नहीं हुए। इसके बड़े कारणों में से एक तो यह था कि सत्यानन्द स्वामी और पंडिता रामाबाई ने हिन्दुनों के