पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२३७

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मलमंसी ] २१५ क्योंकि इसके बिना निर्वाह नहीं है। परस्वार्थी मरने पर चाहे वैकुंठ जाते हों पर दुनियां में सदा दुखी रहते हैं और हमारे महा मंत्र के मानने वाले दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति किया करते हैं। भारत और इंगलैंड इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। फिर भी न जाने कब हमारे देशी भाई स्वार्य की महिमा जानेंगे। हम प्रतिज्ञापूर्वक कहते हैं, जो कोई स्वार्थ साधन के लिये निंदा स्तुति, पाप पुन्वादि का विचार न करेगा वुह थोड़े ही दिन में सब प्रकार संपन्न हो जायगा और अंत में किसी को उसकी निंदा करने का साहस न होगा। महात्मा कह गए हैं 'समरथ को नहिं दोष गुसांई'। स्वार्थसाधन में दक्ष होने से बेईमान मनुष्य चतुर कहलाता है, हत्यारा बीर कहलाता है, परविंदक स्पष्टवक्ता कहलाता है । जिस पर परमात्मा की दया होती है वही स्वार्थसाधन तत्पर होता। इससे हे भाइयो, ब्राह्मण के वाक्य को वेद की रिचा समझ के दिन रात, सोते वागते, स्वार्थ २ रटा करो। इसी में भला होगा, नहीं सदा यों ही अवनति होती रहेगी जैसी महाभारत के समय से होतो आई है। खंड ६, सं० २ (१५ सितंबर ह० सं० ५) भलमंसी यदि भलमंसी यही है कि नाना भांति के क्लेश और हानि सहना पर पुरानी लकीर के बाहर एक अंगुल भी बाहर न होना, बिरादरी में दो दिन की वाह २ के लिये ऋण काढ़ के सैकड़ों की आतिशबाजी छिन भर में फूक के संतान के माथे कर्ज पढ़ जाना, केवल नाई और पुरोहित की प्रसन्नता के लिये साठ बरस और आठ बरस के पर कन्या की जोड़ी मिलाना तथा दोनों का जन्म नशाना, पांच बरस को विधवा का यौवनकाल में व्यभिचार एवं भ्रूणहत्या टुकुर २ देखते रहना, बरंन छिपाने का यत्न करना, पर विधवा विवाह का नाम लेने वालों से मुंह बिचकाना, भूखों मर जाना पर अपना पराया धन लगा के छोटा मोटा धंधा तथा दश पांच की नौकरी न करना, लड़कियों का जवान बिठला रखना, उनका मनोवेदनाजनित शाप सहना पर बराबर वाले अथवा कुछ अठारह बीस बिशुध वंशज के साथ विवाह न करना, दहेज की दुष्ट प्रथा के मारे नई पौध की उन्नति मद्री में मिलाना, बंध बांधव होटलों में खाया करें, विमिनी स्त्रियों के मुंह में मुंह मिलाया करें अथवा कोटि २ कुकर्म कर जेल में जाया करें, कुछ चिंता नहीं, पर विद्या पढ़ने और गुण सीस : के लिये विलायत हा आवै तो उन्हें जाति में न मिलाना । क्यों ? रीति नहीं है। ऐसा करने से नाम धरा जायगा । पुरखों की नाक कटेगी। भलमंसी में बट्टा लगेगा। न जाने कोई रीत पहिले पहिल किसी के चलाए बिना आप से आप चल गई थी, या आप का अभी तक नाम ही न धरा गया, अपवा ऊपर कहे हुए कामों के अंत में नाम धरा ही न जायगा, वा पुरखों