पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२२७

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श्वर का बचन ] २०५ भारत सन्सान कहा कर इन अपने घर के अमूल्य रत्नों का आदर न करें और जिनके द्वारा हमें यह महामणि प्राप्त हुए हैं उन का उपकार न मानें, तथा ऐसे राम को, जिनके नाम पर हमारे पूर्वजों के प्रेम, प्रतिष्ठा, गौरव एवं मनोविनोद की नीव थी अथच हमारे लिए इस गिरी दशा में भी सच्चे अहंकार का कारण और आगे के लिए सब प्रकार के सुधार की आशा है, भूल जायं अथवा किसी के बहकाने से राम नाम को प्रतिष्ठा करना छोड़ दें तो कसी कृतघ्नता, मूर्खता एवं आत्महिंसकता है। पाठक, पदि सब भांति की भलाई और बड़ाई चाहो तो सदा, सब ठौर, सब दशा में, राम का ध्यान रक्खो, राम को भजो, राम के चरित्र पढ़ो सुनो, राम की लीलादेखो दिखाओ, राम का अनुकरण करो। बस इसी में तुम्हारे लिए सब कुछ है। इस रकार और मकार का वर्णन तो कोई त्रिकाल में करी नहीं सकता, कोटि जन्म गावें तो भी पार न पावैगे। इससे यह लेख अधिक न बढ़ा के फिर कभी इस विषय पर लिखने की प्रतिज्ञा एवं निम्नलिखित आशीरामर्वाद के साथ लेखनी को थोड़े काल के लिए विश्राम देते हैं। बोलो, राजा चन्द्र की ! कल्याणानानिधानं, कलिमलमथनं पावनंपावनानाम् पायं यन्मुमुक्षोः सपदि परपदप्राप्तये प्रस्थितस्य । विश्रामस्थानमेकं कविवरवचसा जीवनं सजनानां बीजन्धर्मद्रुमस्य प्रभवतु भवतांभूतये राम नामः ।। १ ।। भावार्थ कुलि कल्यान निधान सकल कलि कलुख नसावन । सनम जीवन प्रान महा पावन महा पावन जन पावन ।। अखिल परम प्रद पथिकन हित मारग कर संबल । कुशल कबीशन की बर बानी को बिहार थल । सदधर्म बिटप कर बीज यह, राम नाम सांचहु अमृत । तव भवन भरे सुख सम्पदा सुमति सुयश निस २ अमित ।। ____ खं० ६ सं० १ (१५ अगस्त १० सं०५) ईश्वर का बचन जब कि ईश्वर संसार भरे का स्वामी है तो यह कैसे संभव है कि उसका बचन केवल एक देश के लोगों की भाषा में हो। जब कि ईश्वर अनंत विद्यामय है तो यह कहां हो सकता है कि ईश्वर की बनाई केवल एक ही दो पुस्तकें हों। हम वेद, बाइ- गिल और कुरआन का तिरस्कार नहीं करते, वह मनुष्य मात्र के मानने योग्य पुस्तकें हैं, पर यह कहना कि केवल यही ईश्वर का बचन है, हमारी समझ में नहीं आता। जब कि वेद में लिखा है 'अनन्ता 4 वेदाः' तो क्या इन्ही ऋग्यजुः सामथर्व पुस्तकों को बनन्त मान लें, जिन के मंत्र या अक्षर भी गिने जा सकते हैं ? ईभर के बचन में