पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२०८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१८६ [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली के निकट पवन भी शीतल और आरोग्यदायक होती है। यह बात अनपढ़े लोग भी देखते है कि जहां कई वृक्ष होते हैं वहां जाने से ग्रीषम का महा कठिन ताप भी बहुत शीघ्र जाता रहता है। फिर इस बात में क्या सन्देह है कि धरती माता के लिए वृक्षों की बड़ी आवश्यकता है। इसी विचार पर पुराने राजा लोग नगरों के आस पास खड़े २ जंगल रखते थे । खुशामदी टटू कह देते हैं, अगले राजा बन्दोबस्त करना न जानते थे, इससे उनके शहरों के इर्द गिर्द जंगल पड़े रहते थे। यह नहीं जानते कि जंगलों से लाभ कितना होता था। लाखों प्रकार को औषधि बिन जोते बोये हाथ आती थीं। शिकार खेलने का बड़ा सुभीता रहता था, जिससे शस्त्रसंचालन का अभ्यास रहता था। नित्य दोड़ने धूपने तथा स्वच्छंदचारी पूरे तंदुरुस्त मृगों का मांस खाने से बलवीर्य बढ़ता था। पत्ते, फल फूल, छाल, लकड़ी का किसी को दरिद्र न रहता था। यदि जंगलों से क्या फल होता है, यह लिखने बैठे तो यह लेख बहत ही बढ़ जायगा। बुद्धिमान पाठक स्वयं समझ लें कि धरती माता को वृक्षों से क्या सुख मिलता है। पर खेद है कि हमारी गवर्नमेंट ने हमारे देश के बन उजाड़ने पर कमर बांध रक्खी है और उसकी देखादेखी हमारे छोटे २ जमीदार भी अपनी भूमि में बीघा भर धरती भी पड़ी हुई देखते हैं तो किसानों को उठा देते हैं। जब हमारे देश में वृक्षों का नाश होने लगा, तभी से हमारी धरती माता जीर्ण हो गई। वर्षा को न्यूनता और रोगों की वृद्धि हो गई। यदि अब भी हमारे देशहितैषी भाई धरती का भला चाहते हैं तो वृक्ष और घास का नाश होना रोकें । लोगों को उपदेश देना, अपनी जमीन पर पेड़ों को न काटना, सदा उनकी संख्या बढ़ाते रहना, सरकार से भी इस विषय में प्रार्थना करते रहना, इत्यादि हो उपाय हैं । पोपल का वृक्ष पोला होता है, वह औरों से अधिक जल खींचता है, इसी से उसका काटना वर्जित है। जहां तक हो सके उसको काटने से अवश्य ही बचाइए । बरगद, आंवला इत्यादि दूध वाले वृक्ष ( जिनमें दूध निकलता है ) से और भी अधिक उपकार है । आप जानते हैं पानी की अपेक्षा दूष अधिक गुणकारी होता है, सो भी वृक्षों का दूध ! जिसका प्रत्यक्ष फल यह है कि बरगद का दूध, गूलर के फल निर्बलों के लिए बड़ी भारी दवा है ! भला उनसे सूर्यनारायण कितनी सहायता पाते हैं, तथा उनके काटने से कितना धरती माता को दुख होता है,इसको हम थोड़े से पत्र में कहां तक लिख सकते हैं ? हमारे रिखियों ने जेठ में बट पूजन एवं अन्यान्य मांसों में दूसरे वृक्षों का पूजन कहा है। इसका हेतु यह था कि सूरज को प्रखर किरणें उनका दूध सुवा देती हैं, वह घाटा उनकी जड़ में दूध डाल के तथा फूल और अष्टगंध की सुगंध से पूरा करना चाहिए । पर शोक है मतावलम्बियों की बुद्धि पर कि उन्होंने मूर्खता से ऐसी हिकमतों को जड़ वस्तु की उपासना समझा है ! अरे भाई, अपना भला चाहो तो मतवाले न बनो । प्रत्येक वृक्ष की रक्षा, वृद्धि और सनातन रीति से जल दुग्धादि द्वारा उनको सोचना स्वीकार करो। खं० ५, सं० १० ( १५ मई, ह. सं० ५)