पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/२०२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१८. [ प्रतापनारायण-ग्रंथावली मूल्य सभा सम्बन्धी पिछला ऋण वर्तमान सभासदों को देना होगा अथच अधिकारियों की बात में सभासदों को बोलने का तब तक अधिकार न होगा जब तक सभी सभ्य एक मत न होंगे, इत्यादि । यद्यपि इस प्रकार के नियम दूषित नहीं हैं पर दुष्ट प्रकृति वाले इनमें भी अपनी चाल यों चलते हैं कि सभास्थान अपने तथा किसी निम सम्बन्धी के घर पर नियत कर देते हैं और चार पांच मेम्बर ऐसे बना लेते हैं जिनमें विद्या, योग्यता, उदारतादि गुण चाहे एक न हो पर हो कोई अपने ही नातेदार भैयाचार और जहां तक हो मुखियापन इन्हीं में रहे। जैसे चचा प्रेसीडेण्ट है तो भतीजा सेक्रेटरी है। मामा कोषाध्यक्ष है तो भान्जा पुस्तकाध्यक्ष है। साला प्रतिनिधि सभाध्यक्ष है तो बहनोई कार्याध्यक्ष है, इत्यादि । कहने सुनने को छोटे मोटे अधिकार दो एक बाहर वालों को भी दे दिए। बस, सभा घर में है, सब सामग्री ( असबाब ) अपने हाय में है । जितने लोगों से सभा कायम रह सकती है वे घर के ही हैं, बिश्रब्ध भोलेभालों के ठगने का ठान ठना सभा में होता हुवाता कुछ नहीं, पर चन्दा हर महीने देते जाव । बाजार से कोई वस्तु मैनेजर साहब चाहे घर के लिए भी लावै पर सभा की है । अतः समासदों को दूने चोगुने दाम देना चाहिए ! जब कभी महीनों में अंतरंग अधिवेशन ( प्राइवेट मीटिंग ) होगा तो बरसों के ऋण का भी कुछ २ भाग सभासदों के माथे मढ़ा जायगा क्योंकि जो सभासद निकल गये हैं वे बेईमान थे इससे वर्तमान ही सभासदो का आसरा है । बस इस रीति से कुछ दिन सम्य बने रहो, चन्दा इत्यादि सब देते रहो, सामान बनवाने के लिए रुपया दे देकर सभामन्दिर के स्वामी का घर भरते रहो। यदि बरस दो बरस में कोई बाहेरंग कार्य हो तब उत्साह दिखलाने को और भी अधिक देना, पर अन्त में इसका नतीजा यह होना है कि एक न एक दिन कोई न कोई झगड़ा खड़ा करके अन मैं, कल तुम, परसों अन्य, समा से निकाल दिया जायगा अथवा आप ही घर बैठ रहेगा और असबाब सभा के अध्यक्ष, सेक्रेटरी अथवा मैनेजर के बाप का हो जायगा । इस रीति से बहतेरे बहुतों को ठगा करते हैं। हमारे पाठकों को चाहिए कि इस प्रकार की चालबाजियों से सावधान रहें और यदि एक आध बार ठग गये हों तो अपने मित्रों तथा सर्वसाधारण को उक्त ठगों के नाम ग्राम की सूचना दे दिया करें जिसमें दूसरे लोग धोखा न खायें। इस प्रकार के वंचक बहुधा कुछ पढ़े लिखे शिष्टी के भेष में हुवा करते हैं । अतः ऐसों की करतूत बहुधा दो एक बेर ठगाए बिना नहीं जान पड़ती, पर तो भी जहां उपर्युक्त चाल ढाल की सभा हो वहां कभी २ ऐसा ही रंग होता है, एवं वहां के उन आने जाने वालों से कुछ २ भेद मिल सकता है जो कभी सभासद थे पर अब नहीं हैं, अथवा हैं भी तो अफसरों के सम्बन्धी वा गहिरे मित्र नहीं हैं। खं० ५, सं० ९,१० ( १५ अप्रैल, १५ मई १० सं०५) खं० ६, सं० ३ (१५ अक्टूबर ह० सं० ५)