पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१९७

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१७५ किस पर्व में किस पर माफत आती है ] फागुन के तो क्या २ गुन गाइएगा, होली है ! ऐसा कौन है जो खुशीके मारे पागल म हो जाता हो ? जब जड़ वृक्ष आम बोराते हैं तब आम खास सभी के बोराने की क्या बात है ! पर सबसे अधिक भंड ओं का महत्व बढ जाता है ! बड़े २ दरबारों में उनकी पूछ पैठार होती है, बड़े २ लोगों को उनकी पदवी मिलती है । 'आ आ आए होली के भंड आ', बस सिर से पांव तक तर हो गए ! खं० ५, सं० ८ (१५ मार्च, ह० सं० ५) किस पर्व में किस पर आफत आती है नौरात्र (चत्र और कुंआर दोनों) में बकरों पर । हमारे कनौजिया भाई एवं बंगाली भाई उन बिचारे अनबोल जीवों का गला काटने ही में धर्म समझते हैं। बैशाख, जेठ, असाढ, बरी हैं तो भी छोटी मछलियों को आसन पीड़ा है ! जिसे देखो वही गंगानी को मथ रहा है। सावर में, विशेषत: रक्षाबंधन के दिन, वंजूस महाजनो का मरन होता है। इनका कौड़ी २ पर जी निकलता है पर ब्राह्मण देवता मुसके बांधने की रस्सी की भांति राखी लिए छाती पर चढे घर में घुसे आते हैं । ___ भादों में स्त्रियो की मरही होती है। हरतालिका पानी पीने में भी पाप चढाती है ! बहुत सी बुढियां तमाखू की थैली गाले पर घर के पड़ी रहती हैं। सभी तो पतिव्रता हई नहीं, दिन भर पति से खांव २ करती हैं। कही पावे तो उस ऋषि की दाढी जला दें जिसने यह बत निकाला है ! पित्रपक्ष में आर्यसमाजी कुढते २ सूख जाते होगे । 'हाय हम सभा करते, लेक्चर देते मरते हैं, पर पोप जो देश भर का धन खाए जाते हैं ।' कातिक में, खास कर दिवाली में आलसी लोगों का अरिष्ट आता है ! यहाँ मुंह में घुसे हुए मुच्छों के बाल हटाना मुशकिल है, वहाँ यह उठाव, वुह धर, यहाँ पुताव, वहाँ लिपाव, कहां की आफत ! अगहन पूस तो मनहूस हई हैं, विशेषतः धोबियों के कुदन आते हैं। शायद ही कभी कोई एकाध दुपट्टा उपट्टा धुलवाता हो। ___ माघ का महीना कनौजियों का काल है। पानी छूते हाथ पांव गलते हैं । पर हमें विना स्नान किए फलाहारी खाना भी धर्मनाशक है ! जलसूर के माने चाहे वो हों, पर हमारी समझ में यही आता है कि सूर अर्थात् अंधे बन के, आँखें मूंद के लोटा भर पानी पीठ पर डाल लेने वाला जलसूर है ! __फागुन में होली बड़ा भारी पर्व है। सब को सुख देती है । पर दुख भो कइयों को देती है । एक माहवारी दिन भर खाना है न पीना, उफ पीटते २ हाथ रह जाता है । होकते २ गला फटता है। कहीं अकेले दुकेले शैतान चौकड़ी (बड़कों के समूह ) में