पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१७३

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प्रतापपरिष १५१ विश्वामित्रीय सृष्टि अर्थात् विश्वामित्र की खोजी और बताई हुई सृष्टि कहने लगे! यही बात क्या कम है ! भगवान रामचंद्रजी को हमारे बाबा ने धनुर्वेद और योगशास्त्र भी सिखाया था । यदि माजकल हमारे भाई आकिन, मांझगांव आदि के मिश्र इस महत्व पर कुछ भी ध्यान दें, तनिक भी विचार करें कि हम किनके वंशज हैं और अब कैसे हो रहे हैं तो क्या हो सौभाग्य है ! इनके उपरांत कात्यायन और किल के सिवा और किसी महर्षि का नाम हमें नहीं मिलता जिन्हें हम अपने पुरुषों में बतलावें। हां परमनाथ (या पवननाथ) बाबा अनुमान होता है कि तीन ही चार सौ वर्ष के लगभग हो गए हैं । बह बड़े यशस्वी थे । उनके साथ हमारे कुल का बहुत घनिष्ठ संबंध है ! कान्यकुब्जपुर ( कन्नौज ) छोड़ के विजयग्राम ( बैजेगांव) में कौन बाबा, किस समय, क्यों आ बसे थे इसका पता नहीं मिलता क्योंकि हमारे यहां इतिहास एवं जीवनचरित्र लिखने की चाल बहुत दिन से नहीं रहा। यदि किसी भाई के यहां शृङ्खलाबद्ध नामावली न हो तो उसका मिलना कठिन है। ___अतः हम अपने अगले पुरुखों के साथ इससे अधिक अपना विवरण नहीं लिख सकते कि विश्वामित्र बाबा के वंश में कात्यायन बाबा के गोत्र में परमनाथ बाबा के असामी ( वंशज ) हैं । उनके जिले में पूर्व की ओर पांच कोस पर बजेगांव नामक स्थान है, वहां के हम मिश्र है । यद्यपि अब बेजेगांव एक साधारण सा गांव है पर अनुमान होता है कि किसी समय वह बड़ा दर्शनीय स्थान, विद्वानों ( मित्रों का ) गांव, होगा । उसके निकट वृहस्थल (बेथर ) और उससे कुछ ही दूर पर विग्रहपुर नामक दामों में प्रकट होता है कि इस प्रांत में किसी बोर पुरुष ने अपना पराक्रम दिखाया होगा पर यह बातें अभी तो अनुमान मात्र हैं, कोई पुष्ट प्रमाण सहित लिखें तो बड़ा उपकार होगा ! हमारी कुल- देवो गार्गी, कुलदेवता बूढ़े बाबू, कुलपुरोहित सत्य शुक्ल, यजुर्वेद, धनुर उपवेद, शिव इष्ट देवता हैं । हमारे पिता श्री संकटाप्रसाद मिश्र, पितामह श्री रामदयाल मिश्र, प्रपितामह सेवकनाथ मिश्र, बृद्धपितामह श्री सबसुख मिश्र हैं। इनके आगे कौन महात्मा थे यह नहीं मालूम । हम समझते हैं कि बहुत ही कम लोग होगे जो वृद्धपिनामह के पिता का नाम जानते होंगे फिर हमारा ही क्या दोष है जो न लिख सके ! हमारे पितामह राम- दयाल बाबा के एक भाई शिवप्रसाद बाबा थे, वुह दूसरे घर में रहते थे। उनके पुत्र जयगोपाल काका और रामसहाय काका हमारे पितृचरण से बड़े थे और हित भी बहुत करते थे। जयगोपाल काका के पुत्र रामकृष्ण दादा भी पिताजी के हितैषी और पदार पुरुष थे। उनके दो पुत्र शिवरतन ( यह भी व्यवहारकुशल और पिताजी के भक्त थे ) दूसरे राम भरोसे हैं जिनमे भाई चारा मात्र है। रामसहाय काका के केवल एक कन्या ( अनंतदेवी ) थी वह विधवा स्वर्गवासिनो हुई अतः उनका वंश उन्ही से समाप्त हुआ। जयगोपाल काका के दूसरी स्त्री से गुरदयाल, विदयाल, गौरीपंकर । उनमें से शिव- दयाल दादा का वंश नहीं है। उक्त दोनों भाइयों का वंश है, पर अधिक स्नेह संबंध न होने के कारण उनकी कथा लिखना भी कागज रंगना मात्र है। अतः हम अपने निज बाबा रामदयाल मिश्र से आरंभ करते हैं। इनके दर्शन हमने नहीं पाए क्योकि हमारे पितृचरण केवल नौ वर्ष के थे जब उन्होंने परलोकजात्रा की थी । सुनते हैं कि यह कवि