पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१५२

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

१३० [ प्रतापनारावग-पंपावतो रहेगा। यदि सचमुच न्याय कोई वस्तु है और उसको साक्षो देके हम से पूछिए तो उत्तर यही पाइएगा कि सब के इतिहास देख डाले, सिद्धांत केवल यह निकला कि दुनिया अपने मतलब की है । उस मतलब के लिए जहां और बहुत बातें हैं, एक यह भी सही । मत- लब निकलने में कोई अड़चन न पड़े तब तक आप मुझको कहते रहिए, मैं आप से कहता रहूंगा कि न्याय के विरुद्ध चलना ठीक नहीं है। इन्साफ को छोड़ना दुरुस्त नहीं है । पर जो कोई पुरुषरत्न अपने हानि लाभ, मानापमान, जीवन-मरण, सुख दुःख इत्यादि को पर्वा न कर के, कठिन परीना के समय, न्याय का साथ देता रहे उसे हम मनुष्य तो कह नहीं सकते, हां,देवता बरंच ईश्वरीयगुणविशिष्ट कहेंगे! खं. ४, सं० १. ( १५ मई ह० सं० ४) इस अक्षर में न तो 'लकार' की सी लालित्य है न 'दकार' का सा दुरुहत्व, न 'मकार' का सा ममत्ववोधक गुण है, पर विचार करके देखिए तो शुद्ध स्वार्थ परता से भरा हुवा है । सुक्ष्म विचार के देखो तो फारस और अरब की ओर के लोग निरे छल के रूप, कपट की मूरत नहीं होते, अप्रसन्न होके मरना मारना जानते हैं, जबरदस्त होके निर्बलों को मनमानी रीति पर मताना जानते हैं, बड़े प्रसन्न हों तो तन,मन-धन से सहाय करना जानते हैं। और जहां कोई युक्ति न चले वहां निरी खुशामद करना जानते हैं, पर अपने रूप में किसी तरह का बट्टा न लगने देना और रसाइन के साथ धीरे २ हंमा खिला के अपना मतलब गांठना, जो नीति का जीव है, उसे बिल्कुल नहीं जानते । इति- हास ले के सब बादशाहों का चरित्र देख डालिए । ऐसा कोई न मिलेगा जिसकी भलो या बुरी मनोगति बहुत दिन तक छिपी रह सकी हो। यही कारण है कि उनकी वर्ण- भाला में टवर्ग हई नहीं ! किसी फारसी से टट्टी कहलाइए तो मुंह बीस कोने का बना- वेगा, पर कहेगा तत्ती ! टट्टी की ओट में शिकार करना जानते ही नहीं उन बिचारों के यहां 'टट्टी' का अक्षर कहां से आवे! इधर हमारे गौरांगदेव को देखिए, सिर पर हैट (टोपी): तन पर कोट, पावों में प्येंट ( पतलून ) और बूट । ईश्वर का नाम आल्मा- इटी ( सर्वशक्तिमान ), गुरू का नाम टिउटर या मास्टर ( स्वामी को भी कहते हैं ) या टीचर, जिससे प्रीति हो उसकी पदवी मिस्ट्रेस, रोजगार का नाम ट्रेड, नफा का नाम बेनीफिट, कवि का नाम पोयट, मूर्ख का नाम स्टुपिड, खाने में टेबिल, कमाने में टेक्स। कहां तक इस टिटिल टेटिल (बकवाद) को बढ़ावै, कोई बड़ी डिक्शनरी (शब्दकोष ) को ले के ऐसे शन्न ढूंढिए जिसमें टकार न हो तो बहुत ही कम पाइएगा! उनके यहां “' इतना प्रसिद्ध है कि तोता कहाइए तो टोटा कहेंगे । इसी टकार को प्रभाव से नोति