पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१२७

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दिम थोड़ा है, दूर जाना है-] १०५ जिनको सब सामग्री विद्यमान है पर मन को शांति को सन्ती सदा की उलझन रहती है । कोई मर गया, सब सुख दुःखवत् प्रतीत होने लगे। किसी का वियोग हुवा, नींद भूख का स्वादु मट्टी में मिल गया। कोई रोग लग गया, जीवन मरण के समान हो गया। और एक वह है जिन्होंने सब प्रकार के ऊपरी सुखों को लात मार दी है । सब झंझट से अलग हो गए हैं। एक महा दरिद्री को भांति जीवन जात्रा करते हैं और आनंद मग्न हैं । क्यों नहीं, बैभवग्रस्त विचारे बंधन में, यह जीवन मुक्त-फिर इनको प्रसन्नता को वे क्या प्राप्त हो सकते हैं। अहा हा, 'तीन ट्रक कोपीन के अह भाजी बिन लोन । तुलसी रघुबर उर बसें इन्द्र बापुरो कोन ।' इस प्रेमानंद को जिसने पाया है वुह संसार के तुच्छ दुःख को क्या समझता है। हरि रस के आगे अमृत भी तुच्छ है, दुनिया के मजे वो क्या। कहते हैं, वह महात्मा भिक्षा मांग लाते थे, सो भी पूरी रोटी किसी से न लेते थे, केवल टुकड़ा । सो श्री सूर्यसुता के शुद्ध सलिल में धो के, क्षुधा शांत कर लेते थे और बिचारा करते थे। यक जाने पर एक छोटी सी कोठड़ी थी, उसमें पुराना खटोली का जंगला पड़ा रहता था। उस पर पड़े रहते थे और अष्ट प्रहर भगवद्मजन में मत्त रहते थे। एक बार कुछ लोग इनके दरशन करने आए। इनमें एक बुढ़िया थी। उसने कोठरी में झुक के देखा तो आप न थे। कही भ्रमण करने गए थे। लोग बैठ गए कि आते होगे । इतने मे वृद्धा की दृष्टि महात्मा के बिछौने पर पड़ी । देखा कि कई खटकीड़े उस पर रेंग रहे हैं। उसे दया लगी कि काटते होगे, इससे झार फटकार के बिष्ठर ( बिस्तर ) को खटमलों से साफ कर दिया। फिर सब बैठे रहे। पर बाबू को दफ्तर की हाजिरी तो बजाना ही न था कि साहब के डर से नियत समय पर ( बरंच कुछ पहिले ) पहुँचते । इनके साहब तो सदा इनके साथ रहते हैं और इनके प्रत्येक आवश्यक काम का संभार करते हैं । अपने सेवकों पर क्रुद्ध होने का स्वभाव ही नहीं रखते, फिर इन्हें काहे की चिंता । चाहे जब जहां आवें, चाहे जब जहाँ जायं। पर आने की फिकर क्यों हो, जब यह विश्वास है कि उसकी रखवाली बड़े भारी सर्वशक्तिमान कर रहे हैं । चोर आ ही के क्या ले जायंगे । दर्शनाभिलाषियों ने देखा कि उनके आने का ठोक नहीं है तो चले गए। ___ जब श्रीयुत महानुभाव घूम धाम कर आए तो थके से थे। अपनी खटा खंड पर लोट गए और खटमलों के न होने के कारण कुछ निद्रा सी आ गई। पर साथ ही हृदिस्थित देव ने जगा दिया तो कुछ देर अवाक रहने के उपरांत, बड़े खेद के साथ उच्च स्वर से रो २ कर कहने लगे, हाय, मेरे उन सच्चे हितकारक मित्रों का बियोग किसने करा दिया। हाय, मेरे वे प्यारे मित्र कहाँ हैं जो मुझे उस समय भगवद्भजन के लिए चैतन्य कर देते थे जब मैं निद्रा में ग्रस्त हो जाता था। हाय, आज मैंने सोकर भजन का अमूल्य समय खो दिया। मेरे सुहृद होते तो ऐसा क्यों होता" साधारण लोग कहते होंगे कि तुच्छ खटमलों के लिए इतना शोक करना कौन बुद्धिमानी है। पर जिनको प्रेमामृत का स्वाद प्राप्त हुआ है, जो भजन रस को पानकर्ता है, उनकी गति न्यारी है। हम में यदि इतनी सामर्थ्य होती कि किसी छोटे बालक से बातचीत करा