पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/११६

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रंथावको अर्थात् स्त्री-पुरुष, वेद, शास्त्र, पुराण, बायबिल, कुरान सब में लिखा है कि एक हैं, परस्पर सुखकारक है। पर हम रिषिवंशीय कान्यकुब्जों में एक दूसरे के बरी होते हैं ! ऐसा क्यों है ? दूध, दही, कैसे उत्तम, स्वादिष्ट, बलकारक पदार्थ है कि अमृत कहने योग्य, पर वर्तमान राजा उस्की जड़ ही काटे डालते हैं, हम प्रजागण कुछ उपाय ही नहीं करते, इसका क्या हेतु है ? इन सब बातों का यही कारण है कि इन सब नामों के आदि में यह दुरूह 'दकार' है ! हमारे श्रेष्ठ सहयोगी 'हिंदी-प्रदीप' सिद्ध कर चुके हैं कि 'लकार' बड़ी ललित और रसीली होती है। हमारी समझ में उसी का साथ पाने से दीनदयाल, दिलासा, दिलदार, दालभात इत्यादि दस पांच शब्द कुछ पसंदी हो गए हैं, नहीं तो देवताओं में दुर्गा जी, रिषियों में दुर्वासा, राजाओं में दुर्योधन महान होने पर भी कसे भयानक है। यह दद्दा ही का प्रभाव है । कनवजियों के हक में दमाद और दहेज, खरीदारों के हक में दुकानदार और दलाल, चिड़ियों के हक में दाम (जाल) दाना आदिक कैसे दुखदायी हैं ! दमड़ी के सी तुच्छ संशा है ! दाद कैसा बुरा रोग है, दरिद्र कैसी कुदशा है, दारू कैसी कड़वाहट, बदबू, बदनामी, और बदफैली की जननी है, दोगला कैसी खराब गाली है, दंगा बखेड़ा कैसी बुरी आदत है, दंश ( मच्छड़ या डास ) कैसे हैरान करने वाले जंतु हैं, दमामा कसा कान फोड़ने वाला बाजा है, देशी लोग कैसे घृणित हो रहे हैं, दलीप सिंह कैसे दीवानापन में फंस रहे हैं । कहां तक गिनावें, दुनिया भरे की दंतकटाकट 'दकार' में भरी है। इससे हम अपने प्रिय पाठकों का दिमाग चाटना नहीं पसंद करते, और इस दुस्सह अक्षर की दास्तान को दूर करते हैं। ख. ४, सं० २ (१५ सितंबर, ह. सं० ३) उरदू बीबी की पूंजी यदि आप किसी साधारण वेश्या के घर पर कभी गए होंगे या किसी जाने वाले से बातचीत की होगी तो आपको भलीभांति ज्ञात होगा कि यद्यपि कभी २ विद्वान, धनवान और प्रतिष्ठावान लोग भी उसके यहां जा रहते हैं, और जो जाता है वह कुछ दे ही के आता है । एवं उन्हें बाहर से देखिए तो तेल, फुलेल, हार, पान, हुक्का, पीकदान, सच्चा वा झूठा गहना एवं देखने में सुंदर कपड़े से सुसज्जित हैं। कमरा भी दो एक चित्र तथा गद्दी तकिया आदि से सजा हुआ है। उनकी बोली बानी हाव भाव भी एक प्रकार की चित्तोल्लासिनी सम्यता से भरी है। दस पांच गीत गजल भी जानती हैं। पर उनकी असली पूंजी देखिए दो चार रंगीन गोटे पट्टे के कपड़े तथा दो ही चार सच्चे झूठे गहने अथच एक वा दो पलंग और पीतल, टीन, मट्टी आदि की