पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६२ पुरानी हिंदी भूपन भनत फरासीस त्यो फिरगी मारि हवसी तुरक डारे उलटि जहाज है। देखत में खान रुस्तम जिन खाक किया सालति सुरति ग्राजु सुनी जो अवाज है। चौकि चौकि चक्त्ता कहत चहुघाँ ते यागे लेत रहो खवर कहाँ लो शिवराज है ।। (१) भानुचद्र नामक जन विद्वान् अकबर के यहाँ थे। उन्होने कादबरी की टीका लिखी है । ( ना० प्र० पत्रिका भाग १, पृ० २३६) स्वरनित विवेकविलास तथा भक्तामर स्तोत्र की टीका मैं उन्होने अपना एक विशेषण 'सूयमहत्त्रनामाध्यापक' अर्थात् सूयसपनाम का पढानेवाला भी दिया है। यह प्रसिद्ध है कि बादशाह अकबर सूर्य की ओर मुंह करके सूर्य के एक हजार एक नाम पढा करता था। यह सहरु नाम स्तोत्र भानुचद्र ने सग्रह किया पीर अकवर को पढाया था। ऋषभदास कवि ( स० १६८५) अपने हीरविजयमूरिरास ( गुजराती ) मे लिखता है कि--- पातशाह काशमीरें जाय भाग चद पूठे परिण थाय। पूछड पातशा ऋपि ने जोड खुदा निजीक कोने वली होइ । भारणचद वोल्या ततखेव नजीक तरणी जागतो देव । ते समप्यों करि वह सार तस नामि ऋद्धि अपार । हुप्रो हुकुम ते तेणीवार सभलावे नाम हजार । आदित्य ने अरक अनेक प्रादिदेव माँ घणो विवेक । जैनाचार्य प्रमिद्ध शोधक विजयधर्मसूरिजी महाराज के सग्रह में इस सूर्यसहस्रनाम की एक प्रति है जिनके अत मे लिखा है कि अक्रदर इसे रोज सुनते थे । अस्तु । यह भानुचद्र फिर जहाँगीर के राज्य में उसके पास आया । जहाँगीर ने उसे कहा कि जैसे बाल्यावस्था मे तुम मुझे १ २ अलबदाउनी, लो का अनुवाद, जिल्द २ पृ० ३३२ । अमु श्रीसूर्यसहस्रनामस्तोत्र प्रत्यह प्रणमत्पृस्त्रीपतिकोटीरकोटिसघट्टित पदकमलनिखनाविपतिदिल्लीपतिपातिसाहि श्री अकबरसाहिजलालदीन. प्र-यह शृणोति सोऽपि प्रतापवान् ( मुनिराज विद्याविजय रचित सूरीश्वर अने सम्राट्, पृ० १४६ ) ।