पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/९०

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पुरानी हिंदी (५२) गयणमग्गसंलग्गलोलकल्लोलवरपर निक्करुणु यकडनक्कत्रक्कचकमण दुहका उच्छलतगुरुपुच्छमच्छरिछोमिनिरतरु दिलसमारजालाजसानवडवानलदुत्तर ।। आवत्तसयायलु जलहि लह गीपउ जिम्ब ते नित्यहि । नीसेसवमनगरा निव्वरण पामनाहु ने गमनहि ।। अक्षरातर- गमन-मार्ग-संलग्न लोल कल्लोल-परंपर। निठकरुणोत्कट-नक्र-च-चरमण-दुख (1) कर।। उछलत गुरु पूच्छ-मत्स्य-रिछोलि-निरंतर । बिलसमान-ज्वाना जटाल-वडवानल दुम्तर । आवर्त-शताकुल जलधि लघु गोपद जिमि ते निम्तरं । नि.शेष-व्यसन'गण-नि स्थापन पार्श्वनाथ जो रिछोलि = पक्ति (देशी), निट्ठवन - वितानेवाला, नमाप्न कन्नवाला, नोट जाना = बीतना (मारवाडी)। समरहिमभन्ना, मा मरना, मनाना सभालना ( मगठी ), सुम्भालना (पजाबी) = याद पन्ना, नमारा करना। . । सभर ॥ ।

(१) माइल्ल धवल के पहले का दोहा प । दिगवर जनो के यहाँ एक नथ वृहत् नयचय मे नाम में । उसके कर्ता श्रीदेवसेन मुनि कहे जाते है, किंतु जैन:निरम नीर के विद्वान् शोधक नाथूराम जी प्रेमो ने गिद्र

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'दबसहावपभास' अर्थात् द्रव्य स्वभावप्रमाण है और माल्ल धवल है। माइल्ल धवल भी SAT पार्ता भी । वह स्वय लिखता है कि पहले दिव्यसहाव' पदाम दोहा में देगा। उसे सुनकर किसी सभकर महालय ने हेमरर पता पिता १ जनहितपी, भाग १४, प्रक, १०-११, १२ पृ० ३०५-३१० ।