पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/७५

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७२ पुरानी हिंदी करिवि पईव सहस्सकरु नगरी मज्झिरण सामि । जइ न रडतु तई हर [तइ] अग्गिहि पविसामि ॥ करके, प्रदीप, सहस्रकर (सूर्य) को, अर्थात् दिनदहाडे, नगरी के मध्य से, है स्वामी यदि न चिल्लाते हुए को, तुझे, हाँ, तो, अग्नि मे, प्रवेश करूँ। रडंतु-पंजावी रडचांदा, हिं० रटता । (१५) वैस विसिट्टह वारियइ जइ वि मनोहर-गत्त । गगाजलपक्खालिय वि सुरिणहि कि होइ पवित्त ॥ वैश-विशिप्टो को, वारिये ( = उनसे बचिए), यदि, भी, मनोहर-गान (वे हो), गगाजल-प्रक्षालित, भी, कुत्तियाँ, क्या, होयें, पविन्न ? वेस विसिट्ठह-वेश-विशिष्टा, अच्छे अच्छे देशवाली, वेश्या, वेश का अर्थ 'वेश्यानो का बाडा' भी होता है उस अर्थ मे 'वैश्याओ के बाडे मे घुसी हुई,' देखो (१६) । सुरिण-स० शुनी । नयरिणहि रोयइ मरिण हसइ जण जाणइ सउ तत्तु । वेस विसिव्ह त करइ ज कट्टह करवत्तु ॥ नयनो से, रो, मन मे, हंस, जानो, जान, सव (या सौ), तत्व, वैशविशिण्टा, वह (वैसे), कर, जो (जैसे) काठ का (= को), करीती। इन दोनो दोहो मे 'वेस विसिछह अलग अलग पद मानें तो पहले मे अर्ध होगा 'वेश्या विशिष्टो (अच्छे लोगो) से वारित की जाती है, और दूसरे मे 'वेश्या विशिष्टो का (= को) वह करै' इत्यादि । करवत्तु = स० करपत्र, हि० करोती। 'करंत॥ ( १७) पिय हउ थक्किय सयलु दिणु तुह विरहग्गि किलत । थोडड जल जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि पिया!, मैं, रही, सकल, दिन, तेरी, विरहाग्नि मे, उबलती, थोड़े, जल मे, ज्यो, मछली, तडफडाहट, करती (हुई) । थक्किय–थकना = रहना (बगला थान), तल्लोविल्लि-तले ऊपरी, छटपटाना ।