पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/४२

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पुरानी हिदा फिसलनी भूमि वाला दोहा (ऊपर, नग्या ३) मुज को निता या उमी की कृति यह भी हो । दोनो अवस्थानो मे या तो मुज को कवि मानना पडेगा का इन दोहो को उसके समय का बना मानना पडेगा। कम से कम यह नो मानना होगा कि यह दोहा स० ११९६ (रामो के कपिन ममय मे ५० मार पहरे) से किमी ममय पहले की रचना है जिमै उम ममय या नी वर मुरका रचित या किसी मे मुज को प्रेपित माना जाता था। (११) भोज के यहाँ एक सरस्वतीयुटुब माया जिसकी सूचना मोज के मेक ने एक मस्कृत-देशी की खिचड़ी का नोक बनाकर दी-- वापी विद्वान् बापपुन्नोऽपि विद्वान् आइ विउपी माईधुप्रापि विउपी। कारणी चेटी मापि विपी वराकी राजन् मन्ये विज्जपुन पुष्टुम्बम् ।। वाप भी विद्वान् है, बाप का पुत्र भी विद्वान् है, मा पडिना है, मा की बेटी 'भी विदुषी है, वैचारी कानी दासी है वह भी विदुपी है, गजन् 1 मानना हूँ यह कुटुव विजो का पूज है। बाप-पिता, यह देशी है कितु हेमकोश के शेषकाड में मन माना गया है । प्रवधचितामणि मे इसका सस्कृतीकृत स्प वप्न (वप्ना-बीज बोनेवाला) भी आया है (पृ० ३०१) (देखो पत्रिका, भाग १, प्रक ३, पृ० २४६, टिप्पण १६)। प्राई-माता (मराटी) । धुपा-बेटी, स० दुनि, पजाबी धी। विज्ज-विज्ञा पाठातर-वप्पो, विद्गी, विधी, विटुमी, विन, विद्व, केवल नेजमगार। (१२) राजा ने उनमें से ज्येष्ठ की पत्नी को ममम्मा दो--- खीरु ? उसने यह पूर्ति को- जा यह रावरणु जाईयउ दह प मरीर। जणरिण वियम्भी चिन्तवः फायण पियाय उ धीर ।। पाठातर--जेइ । -- गि